Posted in हिन्दी, ग़ज़ल, blog

रातें बीत जाती हैं

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222 1222 1222 1222

यूँ तन्हाई में अक्सर मेरी, रातें बीत जाती हैं,

बिना मेरे कैसे उन्हें, सुकूँ से नींद आती है!

जमीं पे दो सितारों के, मिलन से है फ़लक रौशन,

हो गर सच्ची मुहब्बत फ़िर, ये काएनात मिलाती है।

नहीं बनना ज़रूरत वक़्त के साथ जो बदल जाए,

मुझे आदत बना लो, उम्र भर जो साथ निभाती है।

मिरे दिल के सफ़े पे नाम, तेरा लिक्खे रखती हूँ,

उसे आँखों से छलके अश्क़ की बूंदे मिटाती हैं।

यूँ हर मिसरे में उल्फ़त, घोल देती है क़लम मेरी,

ग़ज़ल पढ़कर ये ना कहना, कि ‘ज़ोया’ तो जज़्बाती है।

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

Posted in हिन्दी कविता, ग़ज़ल, blog

जज़्बात लिखती हूँ

1222 1222 1222 1222

फ़क़त अल्फ़ाज़ ना ये समझो, मैं जज़्बात लिखती हूँ,

लबों पे है दबी जो मैं, वो दिल की बात लिखती हूँ।

बेशक़ वाकिफ़ हूँ मैं भी, तल्ख़ी-ए-हालात से तेरे,

कभी ना होगी तुझसे मैं, वो ही मुलाक़ात लिखती हूँ।

ख़याल-ए-ग़म-ए-मोहब्बत में कट जाता है दिन मेरा,

गुज़र जाती बिना तेरे, वो तन्हा रात लिखती हूँ।

तिरी इस बेरुखी से अब ये मेरा दिल सुलगता है,

गिरे जो आँखों से वो अश्क़ की बरसात लिखती हूँ।

कि दिल में दर्द होठों पे तबस्सुम रखती है ‘ज़ोया’,

लहू की स्याही से मैं दर्द की आयात लिखती हूँ।

[ तल्ख़ी-ए-हालात=bitterness of situation / तबस्सुम=smile ]

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

(स्वरचित / सर्वाधिकार सुरक्षित)

Posted in शायरी, हिन्दी, blog

मिठास इश्क़ की

1212 1212 1212

अधूरी रहती इन लबों की प्यास है
है पहनी गर्म बाहों की लिबास है
बदन में घुलती चाशनी-ए-इश्क़ जो
बड़ी लजीज़ इश्क़ की मिठास है।

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

Posted in #दोहे, हिन्दी, हिन्दी कविता, blog

दीपावली दोहे

आप सभी को दीपावली के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।💥🎆

मन के तम को दूर कर, जलाओ आज दीप।
जीवात्मा प्रज्वलित कर, जला लो अमरदीप।।१।।

जो घर हो नारी मान, लक्ष्मी आए उस द्वार।
रखें देह, मन, हिय साफ़, मिले वैभव अपार।।२।।

जलती बाती तम हरे, दीपक तो आधार।
अमावस में उजास करे, दीपों का त्योहार।।३।।

बुराई पर अच्छाई की, विजय हुई थी आज।
निज बुराई को तज कर, कीजिए अच्छे काज।।४।।

रंगों से सजा हर द्वार, लाए घर में उमंग।
लहराती दीपक ज्योति, भरे मन में तरंग।।५।।

पर्व है दीवाली का, हुआ जगमग संसार।
शहीदों के नाम जलाए, एक दीपक इस बार।।६।।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

धन्यवाद।

Posted in हिन्दी कविता, blog

गुरु

अज्ञान का अंधकार मिटाकर, ज्ञान का दीपक जलाता है
उँच-नीच ना देखकर, वो अपना फ़र्ज़ बखूबी निभाता है

सत्य, अनुशासन का पाठ पढ़ाकर, हर बुराई मिटाता है
हर सवाल का जवाब देकर, सारी उलझन सुलझाता है

भटके हुए को राह दिखाकर, वह मार्गदर्शक बन जाता है
स्वयं में आत्मविश्वास जगाकर,लक्ष्य की मंजिल दिखाता है

पाप एवं लालच त्याग कर, धार्मिक संस्कार सिखाता है
गुमनामी से बाहर लाकर, एक नई पहचान दिलाता है

अज्ञानता के भंवर से निकाल कर, नैया पार लगाता है
संचित ज्ञान का धन देकर, सबका जीवन संवारता है

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का योगदान सफल हो जाता है
शिष्य बुलंदियों को छूकर, गुरु चरणों में शीश झुकाता है।

Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

Posted in हिन्दी कविता, blog

भारत की शान है तिरंगा

भारत की शान है तिरंगा
हमारा मान है तिरंगा

जवान की आन-बान है तिरंगा
दुश्मनों का बुरा अंजाम है तिरंगा

भारत की आवाम की पहचान है तिरंगा
भारतीयों का अरमान है लहराता तिरंगा

जीत का एलान है तिरंगा
किसान की जान है तिरंगा

हर एक इंसान का चारों धाम है तिरंगा
जिसके आगे मस्तक ऊंचा ऐसा चढ़ान है तिरंगा

तीन रंग से चमकता है हमारा तिरंगा
राष्ट्रीय गान में फहराए तिरंगा

भारत विकास का अभियान है तिरंगा
हिन्दुस्तान का अभिमान है तिरंगा

मेरे लिए मेरा ध्यान है तिरंगा
आज मेरी कविता का कलाम है तिरंगा

भारत की शान है तिरंगा
भारत की शान है तिरंगा।

Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’

स्वरचित / सर्वाधिकार सुरक्षित

देश के आजाद होने के बाद संविधान सभा में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 22 जुलाई 1947 को तिरंगे झंडे को राष्ट्रीय ध्वज घोषित किया था। हमारे देश की शान है तिरंगा झंडा।

आप सभी को तिरंगा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।🇮🇳

Image Credit: Google

Posted in #poetry

ईद मुबारक

दुआ करो कि हर इंसान को समझ आए इंसानियत,
ऐ मौला! तेरे हर बंदे की ज़बाँ में आ जाए तहज़ीब।

अहल-ए-जहाँ में छाए प्यार, मोहब्बत की नजाकत,
एक बार फिर से कुदरत की प्रकृति बन जाए जन्नत।

दुआओं की हो इतनी असर कि बदल जाये किस्मत,
हर दुआ क़ुबूल हो…. जिसने दिल से की हो इबादत।

सबको ख़ुशी मिले और पूरी हो जाए हर नेक हसरत,
ए ख़ुदा! इस ईद में मिटा दे सबके बीच है जो नफ़रत।

या अल्लाह! कोई गुमराह न हो करदे तू ऐसी हिदायत,
नमाज़ अदा करें शिद्दत से…मुश्किलों से पाले निजात।

आप सभी को ईद मुबारक🌙🌠

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

शुक्रिया😊

Posted in हिन्दी, ग़ज़ल, blog

कुछ क़समें झूठी सी

इज़हार-ए-इश्क़ में कुछ क़समें झूठी सी उसने खाई थी,
यक़ीन नहीं आता, क्या मोहब्बत भी झूठी दिखाई थी?

सरेआम नीलाम कर दिए उसने मेरे हर एक ख़्वाब को,
जिसने मेरे दिन का चैन औ मेरी रातों की नींद चुराई थी।

जिसे समझ बैठी थी मैं आग़ाज़-ए-मोहब्बत हमारी,
दरअसल वो तो मिरे दर्द-ए-दिल की इब्तिदाई थी।

यूँ तो नज़रअंदाज़ कर गई मैं उसकी सारी गलतियां,
मगर क्या अच्छाई के पीछे भी छुपी उसकी बुराई थी!

अब कैसा गिला और क्या शिकायत करूँ उस से!
जब दोनों के मुक़द्दर में ही लिखी गई जुदाई थी।

उसकी इतनी बे-हयाई और बेवफ़ाई के बावज़ूद भी,
माफ़ कर दिया उसे, ये तो ‘ज़ोया’ की भलाई थी।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

शुक्रिया🙂

Posted in हिन्दी, हिन्दी कविता, blog, Uncategorized

इन्डिया फ़िर से भारत बन गया

इन्डिया फ़िर से भारत बन गया।

आज फ़िर से भारतीय नृत्य मंच पर छा गया,
आज फ़िर से भारतीय संगीत हर कोई गा रहा।

इन्डिया फ़िर से भारत बन गया।

कला के क्षेत्र में भारतीय कला की है बोलबाला,
आज झांसी की रानी बन गई हैं हर भारतीय बाला।

इन्डिया फ़िर से भारत बन गया।

आज फ़िर से विदेशों में भारत देश आगे आ गया,
नासा में भारत का वैज्ञानिक आज सफलता पा गया।

इन्डिया फ़िर से भारत बन गया।

आज फ़िर से आयुर्वेद विदेशियों ने भी है अपनाया,
सिर्फ़ भारत में नहीं पूरे विश्व ने योग दिवस है मनाया।

इन्डिया फ़िर से भारत बन गया।

आज फ़िर से संस्कृत को अभ्यासक्रम ने है अपनाया,
देखो ओलंपिक में भारत की हॉकी टीम का दबदबा है छाया।

इन्डिया फ़िर से भारत बन गया।

एक दिन ऐसा आएगा जब भारत फ़िर से इतिहास बनाएगा,
तब सिर्फ़ दो दिन नहीं पूरा साल भारत जश्न मनाएगा।

इन्डिया फ़िर से भारत बन गया।
इन्डिया फ़िर से भारत बन गया।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

🇮🇳जय हिन्द जय भारत🇮🇳

Posted in हिन्दी, ग़ज़ल, blog

पुरानी यादों की चादर

ख़ुशी, ग़म, प्रेम, धोखे के टुकड़े मिलाकर,
बुन ली है मैंने पुरानी यादों की चादर।

सुराख़ से सर्द हवा झाँकती, मैली, फटी सी,
फिर भी गर्माहट देती पुरानी यादों की चादर।

जब सितम ढाए तेज़ धूप और गर्म हवा,
अंगारों सी तपती जमीं पर बनती मेरा बिस्तर।

कभी सताए बुरे ख़्वाब, हो तन्हाई महसूस,
पुरानी यादों की चादर ओढ़ लेती हूँ लपेटकर।

ख़ामोशी से जब बहता है अश्कों का सैलाब,
बन जाती माँ का आँचल पुरानी यादों की चादर।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

धन्यवाद

Posted in हिन्दी, ग़ज़ल, blog

तारीफ़-ए-हुस्न

सुनहरी लहराती ये ज़ुल्फ़ें तिरी और ये शबाब,
कोमल नाज़ुक बदन तिरा जैसे महकता गुलाब।

बैठ गया तू सामने तो साक़ी की क्या ज़रूरत,
सुर्ख़ थरथराते ये लब तिरे जैसे अंगूरी शराब।

सहर में जब तू लेता अंगड़ाई ओ मिरे सनम,
तुझे चूमने फ़लक से उतर आता है आफ़ताब।

रौशन कर दे अमावस की काली अँधेरी रात भी,
मिरा हसीं माशूक़ जब रुख़ से उठाता है हिजाब।

तारीफ़-ए-हुस्न लिखने को बेताब है मेरी कलम,
ग़ज़ल क्या! ‘ज़ोया’ तुझ पे लिख दूँ पूरी किताब।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

शुक्रिया

Posted in हिन्दी, हिन्दी कविता, blog

नया साल मुबारक हो

कुछ डायरी के पन्ने भरेंगे इस साल में

पिछले बरस कई कोरे कागज़ छूट गए थे।

अब के बरस दिल के जज़्बात को बयां करना है कलम से

पिछले साल तो स्याही ही ख़त्म थी कलम में।

नये साल में कुछ नये दोस्त बन गए हैं

तो पिछले बरस के दोस्तों से कभी कभी बातें होती है।

कुछ दर्द चिल्ला उठे थे पिछले बरस में

अबके साल खुशियों की कविताएँ गाएंगे।

बहुत कुछ अधूरा रह गया पिछले साल में

बहुत ख्वाहिशें लेके दाखिल हुए हैं इस साल में।

बुरे लम्हे की कड़वी यादों को दफन कर दी है बंजर जमीं में

उन खूबसूरत यादों को जमा कर आए हैं बैंक के खाते में।

पिछले बरस में अब मुड़कर मत देखो

चल पड़ो आगे नया साल सब को मुबारक हो।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

Happy New Year💝🎉

Posted in शायरी, हिन्दी, blog

आगाज़-ए-शायरी (शेर-ओ-शायरी)

ग़म-ए-ज़िंदगी में  जीने की  चाहत होनी चाहिए,
तिजारत-ए-इश्क़ में प्यार की दौलत होनी चाहिए।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★

माना ख़ार के बीच महकता गुलाब हो तुम,
बेशक ताउम्र पढ़ना चाहो वो किताब है हम।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★

ख़्वाबों की बंद खिड़की खोल, वो सजा गया मेरी दुनिया,
हालात ने क्या दस्तक दी, उसने बदल दिया तौर तरीका।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★

सच की पाठशाला में जब से इश्क़ है पढ़ लिया,
ख़ुदा-ए-पाक के नाम रूह पर इश्क़ लिख दिया।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★

बस जाए दिल-ओ-दिमाग में हर लम्हा,
भर जाए किताब-ए-ज़ीस्त का हर पन्ना।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

उर्दू शब्दों के अर्थ: तिजारत=व्यापार/ ख़ार=कांटा/ किताब-ए-ज़ीस्त= ज़िंदगी की किताब

शुक्रिया

Posted in हिंदी, हिन्दी कविता, ग़ज़ल, blog

मेरी कविता

‘मेरी कविता’ उनवान पर आज हूँ लिखती मेरी कविता,
सिर्फ अल्फ़ाज़ नहीं, मेरे जज़्बात बयां कर जाती मेरी कविता।

मेरी कविता में लिखा है मैंने ज़िंदगी का तज़ुर्बा,
सिर्फ पंक्तियां नहीं, एहसास महसूस कराती मेरी कविता।

मेरी कविता फ़क़त एक दास्ताँ नहीं, ख़ुलूस-ए-निहाँ हैं,
सिर्फ तसव्वुर नहीं, हरेक मर्ज़ की दवा देती मेरी कविता।

मेरी कविता सिर्फ दुनयावी खूबसूरती नहीं दिखाती,
क़ायनात से मोहब्बत, रहम करना सिखाती मेरी कविता।

सिर्फ लय, छंद, अलंकार नहीं, मेरी कविता बजती तरंग है,
माँ शारदे की आराधना से है आती मेरी कविता।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

Note: यह रचना प्रकाशित हो चुकी है और कॉपीराइट के अंतर्गत आती है।

शुक्रिया।

Posted in हिन्दी कविता, ग़ज़ल, blog

ग़ज़ल

अश्कों को मेरे तेल समझ दीया जला दिया,
लहू को मेरे मरहम समझ ज़ख़्म पर लगा दिया।

बेइंतहा फिक्र करते थे उनकी शाम-ओ-सहर,
उसने हमारी परवाह का भी दाम लगा दिया।

इश्क़ में नहीं निभा सके वो वादा-ए-मोहब्बत,
और बेवफ़ा का इल्ज़ाम हम पर ही लगा दिया।

मोहब्बत करके दिल तोड़ गया वो मतलबी
फिर दोस्ती का नाम देकर एहसान जता दिया।

वो क्या समझेगा ‘ज़ोया’ तेरी ग़ज़ल, शायरी को,
कागज़ पर उतरे जज़्बात को अल्फ़ाज़ बता दिया।

© Jalpa lalani (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Note: इसकी कॉपी करना मना है।

शुक्रिया।

Posted in हिन्दी, हिन्दी कविता, blog

दशहरा विशेष दोहे

सादर नमन पाठकों।🙏
आज दशहरा के पावन पर्व पर प्रस्तुत है मेरे द्वारा रचित दोहे।
आप सभी को दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।

इह बसत हैं सब रावण, ना खोजो इह राम।
पाप करत निस बित जाए, प्रात भजत प्रभु नाम।।

अंतर्मन बैठा रावण, दुष्ट का करो नाश।
हिय में नम्रता जो धरे, राम करत उहाँ वास।।

कोप, लोभ, दंभ, आलस, त्यजो सब यह काम।
रखो मुक्ति की आस, नित भजो राम नाम।।

पाप का सुख मिलत क्षणिक, अंत में खाए मात।
अघ-अनघ के युद्ध में, पुण्य विजय हो जात।।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

धन्यवाद।

Posted in हिन्दी कविता, blog

बड़ों का साया

तपती धूप में है घने दरख़्त सा बड़ों का साया
ग़म के अँधेरे में हैं ख़ुशियों सा जगमगता दिया

सफ़र-ए-ज़ीस्त में हरदम उसे साथ खड़े हैं पाया
ख़्वाहिश हुई मुकम्मल दुआ में जब हाथ उठाया

सिरातल मुस्तक़ीम का रास्ता उसने है दिखाया
ख़ुशनसीब हैं वो जिसके सर पर है बड़ों की छाया।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

Posted in हिन्दी कविता, blog

बहुत कुछ बाकी है

बहुत कुछ बाकी है तेरे मेरे दरमियाँ,
तेरी याद में अभी आँखें भर आती है।

मोहब्बत से ऊँचा नहीं यह आसमाँ,
पर तूने हर दम इसे जमीं से नापी है।

सफ़र-ए-इश्क़ की हुई है शुरुआत,
अभी तो ये सिर्फ़ प्रेम की झांकी है।

बहुत कुछ बाकी है तेरे मेरे दरमियाँ
दूरीमें नज़दीकी का एहसास काफ़ी है।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

Posted in ग़ज़ल, blog

नज़रें चुराने लगे वो

हुआ है मलाल अब ख़ुद से नज़रें चुराने लगे वो,
करके गुस्ताखी-ए-जुर्म अवाम से मुँह छुपाने लगे वो।

बिना सबूत सच्चाई साबित नहीं होती अदालत में,
औरों पर इल्ज़ाम लगाके गुनाह पर परदा गिराने लगे वो।

झूठ की चीनी मिलाके सच का कड़वा शर्बत पिया नहीं गया,
आबेहयात में जहर घोलकर सबको पिलाने लगे वो।

अल्लाह के दर पे सिर झुकाकर सजदे में करते है तौबा,
होकर बेख़बर ख़ुदा की नज़रों से राज़ दफनाने लगे वो।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

Posted in हिन्दी कविता, blog

सड़को पर समंदर

आज की बारिश को महसूस कर के कुछ ज़हन में 

आया है जो कागज़ पर उतर आया है। 

उफ्फ़ ! क्या ढाया है कुदरत का क़हर 

जैसे बह रहा है सड़को पर समंदर। 

जिस बारिश से आती है चेहरे पर ख़ुशी 

आज वह बारिश क्यों हुई है गमगीन। 

दौड़ आते थे बच्चे बारिश में खेलने बाहर 

आज वह डर के बैठे हैं घर के भीतर। 

दुआ करते थे पहली बारिश होने की 

आज दुआ कर रहे हैं उसे रोकने की। 

यह गरजता हुआ बादल जैसे रोने की सिसकिया 

यह चमकती हुई बिजली जैसे आँखों की झपकियां। 

क्या गलती हो गई हम इन्सान से ऐ ख़ुदा

क्यों आज बादल को पड़ रहा है रोना। 

अब नही सुनी जाती बादल की यह सिसकिया 

साथ मे सुनाई देती हैं किसानों की बरबादियाँ। 

संभल जा ऐ इन्सान, है इतनी सी गुज़ारिश 

सर झुका दे कुदरत के आगे तभी रुकेगी यह बारिश। 

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

Posted in शायरी, blog

आगाज़-ए-शायरी(शेर-ओ-शायरी)

यकीन है खुदा पर तभी इम्तिहान ले रहा है मेरा

दर्द दे कर रुलाता है, फ़िर हँसाता भी है

बार बार गिराता है, फ़िर उठाता भी है

मैं भी देखती हूँ कि दर्द जीतता है या यकीन मेरा।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

लोग हमे पागल समझते है, हमारी हँसी को देखकर

अब उन्हें क्या पता इस हँसी के पीछे रखते है कितने दर्द छिपाकर।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

जिन आँखों में गहरा झील बसता था

जिंदगी ने है इतना रुलाया

सूख गया है ग़म-ए-समंदर

अब तो अश्क़ भी नहीं गिरता।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

उसने कहा दवाई ले लो ताकि दिल का दर्द कम हो

अब उन्हें कैसे कहे कि दिल के हक़ीम ही तुम हो।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

शेरो-शायरी लिखना हमें कहा आता है

ये तो दिल के एहसास है जो उभर आते है।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

Posted in #poetry

क्यों जा रहे हो?

ज़िंदगी की जंग से हार कर यूँ मुँह मोड़कर तुम क्यों जा रहे हो?
अँधेरे में जाकर अपने ही अक्स को ख़ुद से क्यों छुपा रहे हो?

दुनिया की भीड़ से दूर सारे बंधन तोड़कर अकेले कहाँ जा रहे हो?
ख़ुद की आँखे बंद करके अपने आपसे ही क्यों नज़रें चुरा रहे हो?

तन्हाई छोड़ इस जहाँ की महफ़िल में तुम अपनी पहचान बनाओ
अँधेरे रास्ते की वीरानगी में उम्मीद की लौ से तुम रोशनी जलाओ

आँखों में है जो अधूरे ख़्वाब मुकम्मल करके उसे हकीकत बनालो
अपनो के साथ मिलकर बेरंग ज़िंदगी में खुशियों के रंग तुम भरलो।

~Jalpa ‘Zoya’

Posted in #poetry

निर्दोष जीव

एक निर्दोष जीव भटक गया था रास्ता, जंगल के पास दिखा उसे एक गाँव
इधर-उधर भटक रहा भूखा-प्यासा, इंसानो को देख जगी उसे एक आशा

मन मे सोचा इंसान में होती है मानवता, क्या पता था इंसान के रुप में था दरिंदा
क्यों खिलाया भूखे जीव को विस्फोटक अनानास, कहाँ गई थी इंसान की इंसानियत

पेट की आग तो न बुझी उसकी, पर उस विस्फोटक ने हथनी का मुंह दिया जला
अपनी फ़िक्र नहीं थी उस माँ को, फ़िक्र थी उसे जो पेट में पल रहा था एक बच्चा

हो गई थी ज़ख्मी फिर भी थी उसमें दया नहीं किया उसके हत्यारों का कोई नुकसान
उन हैवानों को जरा भी रहम नहीं आया, जो दो बेजुबानों की बेरहमी से ले ली जान

सिर्फ भूखी थी माँ और आख़िर क्या कुसूर था उसका जो अभी तक जन्मा नहीं था
ऐसे क्रूर कृत्य से किसीकी भी रूह काँप जाए, पर वो हत्यारे तो हुए भी नहीं शर्मसार

धीरे-धीरे विनाश हो रहा है सृष्टि का, इंसान क्यों नहीं समझ रहे है ईश्वर का इशारा
ऐ ईश्वर! दे मुझे एक जवाब, ऐसे हैवानों के कृत्यों की निर्दोष जीव क्यों भुगतें सजा?

~Jalpa ‘Zoya’

Posted in Uncategorized

आगाज़-ए-शायरी(हिंदी शायरी)

ख़ुद से ख़ुद का जोड़ लिया है राब्ता

इस फ़रेबी दुनिया में अब नहीं आता किसी पर भरोषा।

★★★★★★★★★★★★★★

सब को दर्द बाँटते बाँटते 

हमदर्द तो नहीं मिला

हर बार ज़ख्म ताज़ा हुआँ

अब मरहम भी नहीं मिलता।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

कमरा भी इतना महक ने लगा कि

इतनी खुश्बू ही उनकी बातों में थी।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

आख़िर किस हद तक रिश्ते में झुका जाए

यह तराजू है जिंदगी का

गर दोनो और से समान रखा जाए

तो घाटा नहीं होगा किसिका।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

क्यूँ शिकायत करते हो कि तन्हा हूँ दिल से

यहाँ हर कोई अकेला है भरी महफ़िल में।

★★★★★★★★★★★★★★★

आ गया उनपे हमें इतना एतबार

एक दिन कर दिया उसने इज़हार

हो गया था हमें भी प्यार

कर बैठे हम भी इक़रार।

~Jalpa

Posted in #poetry

“माँ अनमोल है” 

कहते है हर एक के जीवन में कोई न कोई प्रेरणा बनकर आता है 

पिता, माँ, भाई, बहन, दोस्त, सेलेब्रिटी, या फ़िर कोई अजनबी 

वैसे ही मेरे जीवन में मेरी प्रेरणा बनी मेरी माँ। 

बचपन से देखती आ रही हूँ तब समझ थोड़ी कम थी 

आज समझ में आया माँ के अंदर कितनी ख़ासियत थी। 

माँ की दिनचर्या सुबह के पहले पहर से शुरू हो जाती 

सर्दी हो या गर्मी पहले घर का आँगन साफ़ करती। 

नाहकर प्रभु का ध्यान धरती, घर मे भी साड़ी पहनती 

उनकी वो बिंदी, वो चूड़िया, आँखों का वो सूरमा 

हमारे उठने तक तो चाय-नास्ता भी बन जाता। 

मेरे भी थे अरमान माँ के जैसा पहनावा मैं भी पहनूँगी 

बड़ी हो कर कुछ अवसर पर भी बड़ी जहमत से सब संभाल पाती। 

कैसे कर लेती थी माँ ये सब पहनकर भी घर का सारा काम 

सबकी जरूरते पहले पूरी करती अपना ख़ुद का कहा था उसको ध्यान। 

एक तो घर का काम, फ़िर बाहर पानी भरने जाना 

क्या इतना कम था कि मंदिर में भी करती थी समाज सेवा। 

कहाँ से मिलता था इतना समय, आज सब सुख-सुविधा 

के बावजूद भी हम कहते है समय कहाँ है हमारे पास। 

हमें पढ़ाना-लिखाना, तैयार करके पाठशाला भेजना 

सब की पसंद का खाना बनाना 

जितना लिखूं उतना कम पड जाए 

शायद माँ पर लिखने के लिए दुनिया के सारे कागज़ भी कम पड़ जाए। 

खाना पकाना सिखाती, तमीज़ से बात करना सिखाती 

घर के सारे काम से लेकर बाहर की दुनिया का ज्ञान भी देती। 

रात को बिना भूले दूध देती कभी मना करे तो डांट कर भी पिलाती 

पूरे दिन का हाल बतियाती, बड़े प्यार से साथ में सुलाती। 

सब के सोने के बाद आख़िर में वो सोती सर्दी में आधी 

रात में अपना कम्बल भी हम बच्चों को ओढ़ाती। 

फ़िर भी सुबह पहेले उठ जाती, आज तक नहीं पूछा, 

आज पूछती हूँ ऐ माँ ! क्या तुम थक नहीं जाती? 

बताओ ना माँ, क्या तुम थक नहीं जाती? 

हमें साफ सुथरा रखना, खाना खिलाना, दूध देना 

पढ़ाना, हमारे साथ खेलना नित्यक्रम था उनका। 

पता नही क्या बरकत है उनके हाथों में 

थोड़े में भी कितना चलाती फ़िर भी कभी पेट रहा न हमारा खाली। 

इतनी उम्र में भी आज है वो चुस्त-दुरुस्त आज भी वो कितना काम कर लेती 

फ़िर भी टी. वी. पर अपनी पसंदीदा सीरियल छूट ने नहीं देती। 

मुझे कहती है तू अकेली कितना काम करेगी 

इतनी छोटी उम्र में भी माँ जितना मैं नही कर पाती। 

माँ का कोई मोल नहीं ,माँ तो अनमोल है 

आज मैं जो भी हुँ, जो भी मुझे आता है 

मेरी माँ के दिये संस्कार है, मेरी माँ का दिया प्यार है। 

सब कहते है मैं माँ की परछाईं हूँ 

पर माँ मैं तेरे तोले कभी ना आ पाऊँगी 

मेरी माँ मेरी प्रेरणा है, मेरी माँ मेरे लिये भगवान है। 

बस इतना ही कहना चाहूँगी 

अब अपने आँसुओं को रोक ना पाऊँगी 

इसके आगे अब लिख ना पाऊँगी…. 

इसके आगे अब लिख ना पाऊँगी…. 

~Jalpa

Posted in शायरी

आगाज़-ए-शायरी(हिंदी शायरी)

“खुशी” 

मुद्दतों से देख रहे थे राह तेरी 

तू आयी भी तो तब 

जब सफ़र ख़त्म होने को है।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

गलत सोच थी मेरी

दुःख की इमारत मेरी है सबसे बड़ी

जब किया मैंने सफ़र

हर इमारत बड़ी निकली।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

ज़्यादा नही बदला मेरा बचपन

पहले सब रोकते थे

और हम खेलते थे

अब सब खेल रहे है हमसे

और हम रुके हुए से हैं।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

प्यार हुआ पर पूरा ना हुआ 

ख़्वाब देखा पर ज़रा देर से देखा 

मुलाक़ातें हुई मगर अधूरी रही 

जुदा हुए मगर एहसास कम ना हुआ। 

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

बाहों में उनके लेते ही हम तो पिघल से गये

पता ही नही चला कब हम उनके इतने क़रीब आ गए।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

अक्सर हमारे पैरों में कांटा चुभना भी गवारा  नही था उनको

अब दिल के ज़ख़्म का भी एहसास नहीं उनको।

~Jalpa