ज़िंदगी की जंग से हार कर यूँ मुँह मोड़कर तुम क्यों जा रहे हो?
अँधेरे में जाकर अपने ही अक्स को ख़ुद से क्यों छुपा रहे हो?
दुनिया की भीड़ से दूर सारे बंधन तोड़कर अकेले कहाँ जा रहे हो?
ख़ुद की आँखे बंद करके अपने आपसे ही क्यों नज़रें चुरा रहे हो?
तन्हाई छोड़ इस जहाँ की महफ़िल में तुम अपनी पहचान बनाओ
अँधेरे रास्ते की वीरानगी में उम्मीद की लौ से तुम रोशनी जलाओ
आँखों में है जो अधूरे ख़्वाब मुकम्मल करके उसे हकीकत बनालो
अपनो के साथ मिलकर बेरंग ज़िंदगी में खुशियों के रंग तुम भरलो।
~Jalpa ‘Zoya’