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रातें बीत जाती हैं

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222 1222 1222 1222

यूँ तन्हाई में अक्सर मेरी, रातें बीत जाती हैं,

बिना मेरे कैसे उन्हें, सुकूँ से नींद आती है!

जमीं पे दो सितारों के, मिलन से है फ़लक रौशन,

हो गर सच्ची मुहब्बत फ़िर, ये काएनात मिलाती है।

नहीं बनना ज़रूरत वक़्त के साथ जो बदल जाए,

मुझे आदत बना लो, उम्र भर जो साथ निभाती है।

मिरे दिल के सफ़े पे नाम, तेरा लिक्खे रखती हूँ,

उसे आँखों से छलके अश्क़ की बूंदे मिटाती हैं।

यूँ हर मिसरे में उल्फ़त, घोल देती है क़लम मेरी,

ग़ज़ल पढ़कर ये ना कहना, कि ‘ज़ोया’ तो जज़्बाती है।

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

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जज़्बात लिखती हूँ

1222 1222 1222 1222

फ़क़त अल्फ़ाज़ ना ये समझो, मैं जज़्बात लिखती हूँ,

लबों पे है दबी जो मैं, वो दिल की बात लिखती हूँ।

बेशक़ वाकिफ़ हूँ मैं भी, तल्ख़ी-ए-हालात से तेरे,

कभी ना होगी तुझसे मैं, वो ही मुलाक़ात लिखती हूँ।

ख़याल-ए-ग़म-ए-मोहब्बत में कट जाता है दिन मेरा,

गुज़र जाती बिना तेरे, वो तन्हा रात लिखती हूँ।

तिरी इस बेरुखी से अब ये मेरा दिल सुलगता है,

गिरे जो आँखों से वो अश्क़ की बरसात लिखती हूँ।

कि दिल में दर्द होठों पे तबस्सुम रखती है ‘ज़ोया’,

लहू की स्याही से मैं दर्द की आयात लिखती हूँ।

[ तल्ख़ी-ए-हालात=bitterness of situation / तबस्सुम=smile ]

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

(स्वरचित / सर्वाधिकार सुरक्षित)

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गुलाबी यादें

1222 1222 1222

तुम्हारी यूँ गुलाबी यादें आती है,

मिरे दिल को सुकूँ थोड़ा दे जाती है।

गुज़र जाता है यादों के सहारे दिन,

जुदाई तेरी, रातों में सताती है।

तसव्वुर में शुआओं सी तिरी सूरत,

मुझे अब भी ये सोते से जगाती है।

कि करती है मुहब्बत वो हमें इतनी,

न जाने फ़िर जहाँ से क्यों छुपाती है।

यूँ ख़्वाबों में मिरे आकर कभी वो तो,

हँसाती है, कभी वो ही रुलाती है।

ये कैसा रिश्ता है, ये राब्ता कैसा,

बुलाती पास है फ़िर दूर जाती है।

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

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सोचा न था

2212   2212   2212   2212 बह्र में ग़ज़ल


तेरी जुदाई में जी पाएंगे कभी सोचा न था,
वो था फ़रेब-ए-इश्क़ तेरा, वो भी तो सच्चा न था।

एतबार के धागे से बंधा राब्ता था अपना जो,
यूँ टूटा इतना भी हमारा रिश्ता ये कच्चा न था।

ख़्वाहिश थी तुझको इक दफ़ा देखूँ पलटकर भी मगर,
मुझको यूँ ही जाते हुए तूने कभी रोका न था।

तुझ से बिछड़के क्या ग़म-ओ-अफसोस करना ऐ सनम,
खोने का भी क्या रंज हो जिसको कभी पाया न था।

सह भी लिए ज़ोया ने सब ज़ुल्म-ओ-सितम भी इसलिए,
खोया था अपनों को, तुझे भी अब उसे खोना न था।

स्वरचित (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’

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कुछ क़समें झूठी सी

इज़हार-ए-इश्क़ में कुछ क़समें झूठी सी उसने खाई थी,
यक़ीन नहीं आता, क्या मोहब्बत भी झूठी दिखाई थी?

सरेआम नीलाम कर दिए उसने मेरे हर एक ख़्वाब को,
जिसने मेरे दिन का चैन औ मेरी रातों की नींद चुराई थी।

जिसे समझ बैठी थी मैं आग़ाज़-ए-मोहब्बत हमारी,
दरअसल वो तो मिरे दर्द-ए-दिल की इब्तिदाई थी।

यूँ तो नज़रअंदाज़ कर गई मैं उसकी सारी गलतियां,
मगर क्या अच्छाई के पीछे भी छुपी उसकी बुराई थी!

अब कैसा गिला और क्या शिकायत करूँ उस से!
जब दोनों के मुक़द्दर में ही लिखी गई जुदाई थी।

उसकी इतनी बे-हयाई और बेवफ़ाई के बावज़ूद भी,
माफ़ कर दिया उसे, ये तो ‘ज़ोया’ की भलाई थी।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

शुक्रिया🙂

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पुरानी यादों की चादर

ख़ुशी, ग़म, प्रेम, धोखे के टुकड़े मिलाकर,
बुन ली है मैंने पुरानी यादों की चादर।

सुराख़ से सर्द हवा झाँकती, मैली, फटी सी,
फिर भी गर्माहट देती पुरानी यादों की चादर।

जब सितम ढाए तेज़ धूप और गर्म हवा,
अंगारों सी तपती जमीं पर बनती मेरा बिस्तर।

कभी सताए बुरे ख़्वाब, हो तन्हाई महसूस,
पुरानी यादों की चादर ओढ़ लेती हूँ लपेटकर।

ख़ामोशी से जब बहता है अश्कों का सैलाब,
बन जाती माँ का आँचल पुरानी यादों की चादर।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

धन्यवाद

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यादों के उजाले

शाम ढले तेरी यादों के उजाले में चली जाती हूँ अक्सर,
शब-ए-हिज़्र में फ़लक के चाँद में तुम्हें पाती हूँ मयस्सर।

शाम-ए-ग़म में बढ़ जाता है इस क़दर तन्हाई का तिमिर,
धुएँ से उभरती तस्वीर तेरी, प्रीत का दिया करती हूँ मुनव्वर।

माज़ी में तेरे साथ बिताए खूबसूरत लम्हात हमें याद आते हैं,
ख़्यालों में आगोश में आकर, तेरी खुश्बू साँसों में लेती हूँ भर।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।