हाँ! मैं एक पिता हूँ, बाहर से दिखता बहुत सख़्त हूँ
मगर बच्चों की आँख में आँसू देखकर टूट जाता हूँ
हाँ! फ़ोन पर ज़्यादा किसीसे बात नहीं करता हूँ
मगर दिल में सबके लिए एहसास मैं भी रखता हूँ
सबकी मन मर्जी करने नहीं देता, टोकता बहुत हूँ
मगर बच्चों की बेहतरी के लिए ही ये सब करता हूँ
हाँ! जब याद आए बेटी की तो जताता नहीं हूँ
मगर कभी रात के अँधेरे में मैं अकेला रो लेता हूँ
सब कहते है मैं सिर्फ़ अपने लिए ये सब करता हूँ
मगर ज़िम्मेदारियों से कभी मैं भी तो थक जाता हूँ
मेरे जाने के बाद कभी मेरी कमी खलने नहीं देता हूँ
ये एहसान नहीं है, फ़र्ज़ है मेरा क्योंकि मैं एक पिता हूँ।
~Jalpa lalani ‘Zoya’
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