Posted in हिन्दी कविता, ग़ज़ल, blog

जज़्बात लिखती हूँ

1222 1222 1222 1222

फ़क़त अल्फ़ाज़ ना ये समझो, मैं जज़्बात लिखती हूँ,

लबों पे है दबी जो मैं, वो दिल की बात लिखती हूँ।

बेशक़ वाकिफ़ हूँ मैं भी, तल्ख़ी-ए-हालात से तेरे,

कभी ना होगी तुझसे मैं, वो ही मुलाक़ात लिखती हूँ।

ख़याल-ए-ग़म-ए-मोहब्बत में कट जाता है दिन मेरा,

गुज़र जाती बिना तेरे, वो तन्हा रात लिखती हूँ।

तिरी इस बेरुखी से अब ये मेरा दिल सुलगता है,

गिरे जो आँखों से वो अश्क़ की बरसात लिखती हूँ।

कि दिल में दर्द होठों पे तबस्सुम रखती है ‘ज़ोया’,

लहू की स्याही से मैं दर्द की आयात लिखती हूँ।

[ तल्ख़ी-ए-हालात=bitterness of situation / तबस्सुम=smile ]

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

(स्वरचित / सर्वाधिकार सुरक्षित)