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इन्डिया फ़िर से भारत बन गया

इन्डिया फ़िर से भारत बन गया।

आज फ़िर से भारतीय नृत्य मंच पर छा गया,
आज फ़िर से भारतीय संगीत हर कोई गा रहा।

इन्डिया फ़िर से भारत बन गया।

कला के क्षेत्र में भारतीय कला की है बोलबाला,
आज झांसी की रानी बन गई हैं हर भारतीय बाला।

इन्डिया फ़िर से भारत बन गया।

आज फ़िर से विदेशों में भारत देश आगे आ गया,
नासा में भारत का वैज्ञानिक आज सफलता पा गया।

इन्डिया फ़िर से भारत बन गया।

आज फ़िर से आयुर्वेद विदेशियों ने भी है अपनाया,
सिर्फ़ भारत में नहीं पूरे विश्व ने योग दिवस है मनाया।

इन्डिया फ़िर से भारत बन गया।

आज फ़िर से संस्कृत को अभ्यासक्रम ने है अपनाया,
देखो ओलंपिक में भारत की हॉकी टीम का दबदबा है छाया।

इन्डिया फ़िर से भारत बन गया।

एक दिन ऐसा आएगा जब भारत फ़िर से इतिहास बनाएगा,
तब सिर्फ़ दो दिन नहीं पूरा साल भारत जश्न मनाएगा।

इन्डिया फ़िर से भारत बन गया।
इन्डिया फ़िर से भारत बन गया।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

🇮🇳जय हिन्द जय भारत🇮🇳

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पुरानी यादों की चादर

ख़ुशी, ग़म, प्रेम, धोखे के टुकड़े मिलाकर,
बुन ली है मैंने पुरानी यादों की चादर।

सुराख़ से सर्द हवा झाँकती, मैली, फटी सी,
फिर भी गर्माहट देती पुरानी यादों की चादर।

जब सितम ढाए तेज़ धूप और गर्म हवा,
अंगारों सी तपती जमीं पर बनती मेरा बिस्तर।

कभी सताए बुरे ख़्वाब, हो तन्हाई महसूस,
पुरानी यादों की चादर ओढ़ लेती हूँ लपेटकर।

ख़ामोशी से जब बहता है अश्कों का सैलाब,
बन जाती माँ का आँचल पुरानी यादों की चादर।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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धन्यवाद

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तारीफ़-ए-हुस्न

सुनहरी लहराती ये ज़ुल्फ़ें तिरी और ये शबाब,
कोमल नाज़ुक बदन तिरा जैसे महकता गुलाब।

बैठ गया तू सामने तो साक़ी की क्या ज़रूरत,
सुर्ख़ थरथराते ये लब तिरे जैसे अंगूरी शराब।

सहर में जब तू लेता अंगड़ाई ओ मिरे सनम,
तुझे चूमने फ़लक से उतर आता है आफ़ताब।

रौशन कर दे अमावस की काली अँधेरी रात भी,
मिरा हसीं माशूक़ जब रुख़ से उठाता है हिजाब।

तारीफ़-ए-हुस्न लिखने को बेताब है मेरी कलम,
ग़ज़ल क्या! ‘ज़ोया’ तुझ पे लिख दूँ पूरी किताब।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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शुक्रिया

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कुछ शाम

तेरी ज़ुल्फ़ तले राहत देती हैं कुछ शाम,
तन्हाई में प्यास बुझाते तेरे यादों के जाम।

तेरी झुकी आँखों से फैला गहरा काजल,
लिख देता है मेरे दिल पर इश्क़ का पैगाम।

अंदाज़-ए-गुफ़्तगू तेरा दिल पर करता वार,
जब तूम भेजती हो यूँ इशारों से सलाम।

छूती है जब तेरे मीठे लबों से चाय,
दूर कर देती है मेरी दिन भर की थकान।

शाम-ओ-सहर दिल के कोरे काग़ज़ पर,
लिखता हूँ बस तेरा ही इक नाम।

चला दे गर मेरे दिल पर तू हुकूमत,
ये नाचीज़ बन जाए ताउम्र तेरा ग़ुलाम।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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शुक्रिया

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चल दूर कहीं

चल इस दुनिया से दूर कहीं हम दोनों चले जाते हैं,
नदी से मोहब्बत और फल से मीठा रस लाते हैं।

आसमाँ को चादर और जमीं को बिछौना बनाते हैं,
सूरज की रोशनी और ठंडी हवा से सुकून पाते हैं।

फूलों से खुशबू और चाँद से चाँदनी चुरा लाते हैं,
चलो उस जन्नत में जाकर आशियाना बनाते हैं।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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शुक्रिया