यकीन है खुदा पर तभी इम्तिहान ले रहा है मेरा
दर्द दे कर रुलाता है, फ़िर हँसाता भी है
बार बार गिराता है, फ़िर उठाता भी है
मैं भी देखती हूँ कि दर्द जीतता है या यकीन मेरा।
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लोग हमे पागल समझते है, हमारी हँसी को देखकर
अब उन्हें क्या पता इस हँसी के पीछे रखते है कितने दर्द छिपाकर।
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जिन आँखों में गहरा झील बसता था
जिंदगी ने है इतना रुलाया
सूख गया है ग़म-ए-समंदर
अब तो अश्क़ भी नहीं गिरता।
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उसने कहा दवाई ले लो ताकि दिल का दर्द कम हो
अब उन्हें कैसे कहे कि दिल के हक़ीम ही तुम हो।
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शेरो-शायरी लिखना हमें कहा आता है
ये तो दिल के एहसास है जो उभर आते है।
© Jalpa lalani ‘Zoya’
शुक्रिया।