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रातें बीत जाती हैं

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222 1222 1222 1222

यूँ तन्हाई में अक्सर मेरी, रातें बीत जाती हैं,

बिना मेरे कैसे उन्हें, सुकूँ से नींद आती है!

जमीं पे दो सितारों के, मिलन से है फ़लक रौशन,

हो गर सच्ची मुहब्बत फ़िर, ये काएनात मिलाती है।

नहीं बनना ज़रूरत वक़्त के साथ जो बदल जाए,

मुझे आदत बना लो, उम्र भर जो साथ निभाती है।

मिरे दिल के सफ़े पे नाम, तेरा लिक्खे रखती हूँ,

उसे आँखों से छलके अश्क़ की बूंदे मिटाती हैं।

यूँ हर मिसरे में उल्फ़त, घोल देती है क़लम मेरी,

ग़ज़ल पढ़कर ये ना कहना, कि ‘ज़ोया’ तो जज़्बाती है।

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

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जीने की हसरत है

1222 1222 1222 1222

नहीं सीने में दिल फ़िर भी मुझे जीने की हसरत है,

अजब है ये हुई भी चोर-ए-दिल से ही यूँ चाहत है।

यूँ आँखें मूंद कर सब पर यकीं कर लेती हूँ अक्सर,

मिले धोखा तो कह देती यही तो मेरी किस्मत है।

हूँ बर्दाश्त के क़ाबिल, मुश्किलें यूँ मुझ पे आती हैं,

यक़ीनन हूँ नज़र में मौला की ये उसकी रहमत है।

ये ना समझो कि कोई ग़म नहीं होता है मुझ को भी,

छुपाना दर्द को अब बन गई मेरी भी आदत है।

अदा ‘ज़ोया’ न कर पाओ नमाज़, करना मदद सबकी 

समझ लेना ख़ुदा की कर ली तूने वो इबादत है।

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

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जज़्बात लिखती हूँ

1222 1222 1222 1222

फ़क़त अल्फ़ाज़ ना ये समझो, मैं जज़्बात लिखती हूँ,

लबों पे है दबी जो मैं, वो दिल की बात लिखती हूँ।

बेशक़ वाकिफ़ हूँ मैं भी, तल्ख़ी-ए-हालात से तेरे,

कभी ना होगी तुझसे मैं, वो ही मुलाक़ात लिखती हूँ।

ख़याल-ए-ग़म-ए-मोहब्बत में कट जाता है दिन मेरा,

गुज़र जाती बिना तेरे, वो तन्हा रात लिखती हूँ।

तिरी इस बेरुखी से अब ये मेरा दिल सुलगता है,

गिरे जो आँखों से वो अश्क़ की बरसात लिखती हूँ।

कि दिल में दर्द होठों पे तबस्सुम रखती है ‘ज़ोया’,

लहू की स्याही से मैं दर्द की आयात लिखती हूँ।

[ तल्ख़ी-ए-हालात=bitterness of situation / तबस्सुम=smile ]

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

(स्वरचित / सर्वाधिकार सुरक्षित)

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गुलाबी यादें

1222 1222 1222

तुम्हारी यूँ गुलाबी यादें आती है,

मिरे दिल को सुकूँ थोड़ा दे जाती है।

गुज़र जाता है यादों के सहारे दिन,

जुदाई तेरी, रातों में सताती है।

तसव्वुर में शुआओं सी तिरी सूरत,

मुझे अब भी ये सोते से जगाती है।

कि करती है मुहब्बत वो हमें इतनी,

न जाने फ़िर जहाँ से क्यों छुपाती है।

यूँ ख़्वाबों में मिरे आकर कभी वो तो,

हँसाती है, कभी वो ही रुलाती है।

ये कैसा रिश्ता है, ये राब्ता कैसा,

बुलाती पास है फ़िर दूर जाती है।

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

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मुहब्बत की क़ैद

1222 1222 1222 1222

ये कैद-ए-इश्क़ से ‘जाना’ तुझे आज़ाद करते है,

मुकम्मल आज तेरी और इक मुराद करते है।

भुला देना मुझे बेशक़ जो चाहो भूलना पर हम,

कहेंगे ना कभी तुम्हें कि कितना याद करते है।

खता कर बैठते है हम मुहब्बत में तिरी यूँ ही,

कि अक्सर उस ख़ुदा का ज़िक्र तेरे बाद करते है।

किया महबूब का सजदा मैंने, की है इबादत भी,

वो ठुकरा के मिरा ये इश्क़ कहीं ईजाद करते है।

कि वो बरबाद करके ज़ोया को, मासूम बन बैठे

दिखाने को किसी की ज़िन्दगी आबाद करते है।

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

स्वरचित , सर्वाधिकार सुरक्षित

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कुछ क़समें झूठी सी

इज़हार-ए-इश्क़ में कुछ क़समें झूठी सी उसने खाई थी,

यक़ीन नहीं आता, क्या मोहब्बत भी झूठी  दिखाई थी?

सरेआम नीलाम कर दिए उसने मेरे हर एक ख़्वाब को,

जिसने मेरे दिन का चैन औ मेरी रातों की नींद चुराई थी।

जिसे  समझ बैठी थी मैं  आग़ाज़-ए-मोहब्बत  हमारी,

दरअसल  वो तो  मिरे  दर्द-ए-दिल  की इब्तिदाई  थी।

यूँ तो  नज़रअंदाज़  कर गई मैं  उसकी सारी गलतियां,

मगर क्या अच्छाई के पीछे भी छुपी उसकी बुराई थी!

अब  कैसा  गिला  और  क्या  शिकायत  करूँ उससे!

जब  दोनों  के  मुक़द्दर में  ही  लिखी  गई  जुदाई  थी।

उसकी इतनी  बे-हयाई और बेवफ़ाई  के  बावज़ूद भी,

माफ़  कर  दिया  उसे,  ये  तो  ‘ज़ोया’  की  भलाई थी।

[इब्तिदाई=शुरुआत]

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित

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कतल इश्क़ का

1222  1222  122
कि दर्द-ए-दिल ये दिलबर ने दिया है,
कतल ये इश्क़ का उसने किया है।

मुहब्बत में सनम ने करके धोखा,
बदल ज़ालिम ने ख़ुद को ही लिया है।

जो मेरी रूह पर खंजर चला तो,
वो हर अश्क़-ए-लहू मैंने पिया है।

मेरी हर साँस में है साँसें उसकी,
न इक लम्हा भी उसके बिन जिया है।

नहीं मांगा था हमने तो कभी भी, 
ये ग़म का तोहफ़ा फ़िर क्यों दिया है!

Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’

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अब दिल नहीं भरता है

1222  1222  1222  1222

तिरी ये इश्क़ की बारिश से, अब ये दिल ना भरता है,

कि महफ़िल-ए-मुहब्बत में, ये मन ग़मगीन रहता है।

तसव्वुर से मिटा दी है यूँ हर इक याद को तेरी,

कि जितना भूलना चाहूँ तू उतना याद आता है।

मुझे ये है ख़बर जिंदा है अब तक तू सनम मेरे,

कि जब तू साँस लेता है ये मेरा दिल धड़कता है।

नहीं मिटते निशां तेरे क़दम के जब मैं चलती हूँ,

कि अब भी साथ में मेरे तिरा ही अक्स दिखता है।

न समझेगा कभी भी वो तेरे जज़्बात को ‘ज़ोया’,

तुझे वो छोड़ किसी ग़ैर की बाहों में सोता है।

Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

शुक्रिया😊

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सोचा न था

2212   2212   2212   2212 बह्र में ग़ज़ल


तेरी जुदाई में जी पाएंगे कभी सोचा न था,
वो था फ़रेब-ए-इश्क़ तेरा, वो भी तो सच्चा न था।

एतबार के धागे से बंधा राब्ता था अपना जो,
यूँ टूटा इतना भी हमारा रिश्ता ये कच्चा न था।

ख़्वाहिश थी तुझको इक दफ़ा देखूँ पलटकर भी मगर,
मुझको यूँ ही जाते हुए तूने कभी रोका न था।

तुझ से बिछड़के क्या ग़म-ओ-अफसोस करना ऐ सनम,
खोने का भी क्या रंज हो जिसको कभी पाया न था।

सह भी लिए ज़ोया ने सब ज़ुल्म-ओ-सितम भी इसलिए,
खोया था अपनों को, तुझे भी अब उसे खोना न था।

स्वरचित (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’

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तुम हो

दोस्तों बह्र में मेरी पहली ग़ज़ल पेश-ए-ख़िदमत है।

बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222 1222 1222

मिरी हर बात में, हर लफ़्ज़ में तुम हो,
जुदा ना मुझसे, मेरे अक्स में तुम हो।

तिरी ख़ुश्बू से मेरी, साँसें है चलती,
मिरे दिल तक हैं जो,हर नब्ज़ में तुम हो।

तू ही रब, तू दुआ भी हो सनम मेरे,
यूँ शामिल ऐसे, मेरी नफ़्स में तुम हो।

तू है उनवान तू ही इख़्तिताम भी है,
किताब-ए-ज़िन्दगी के हर्फ़ में तुम हो।

शुरू तुझ से, ख़तम तुझ पे मिरी तहरीर,
यूँ ‘ज़ोया’ की ग़ज़ल, हर नज़्म में तुम हो।

स्वरचित (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’

उर्दू शब्दों के अर्थ:- [ इख़्तिताम=समापन, ending/ तहरीर=लेखनी/ नब्ज़=रग/ नफ़्स=आत्मा,रूह/ उनवान=शीर्षक]

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हिन्दी मेरी पहचान है

हिन्दी मेरी पहचान है, दिल से उसे अपनाया है
विविधता में, हर भारतीय हिन्दी से जुड़ पाया है

मातृभाषा पर गर्व करें, हिन्दी हमारे राष्ट्र की धरोहर है
राजभाषा का सम्मान करें, हिन्दी संस्कृति की बुनियाद है 

संस्कृत से उद्गम हुई, हिन्दी देवनागरी लिपि है
सबसे सरल, सहज, प्यारी, हिन्दी भाषा मीठी है

हिन्दी बोलने वालों का न करो अपमान, करें हिन्दी का मान
हिन्दी दिवस का है विशेष स्थान, विश्व में बढ़ाओ इसकी शान।

Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’

आप सभी को हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं🇮🇳

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गुरु

अज्ञान का अंधकार मिटाकर, ज्ञान का दीपक जलाता है
उँच-नीच ना देखकर, वो अपना फ़र्ज़ बखूबी निभाता है

सत्य, अनुशासन का पाठ पढ़ाकर, हर बुराई मिटाता है
हर सवाल का जवाब देकर, सारी उलझन सुलझाता है

भटके हुए को राह दिखाकर, वह मार्गदर्शक बन जाता है
स्वयं में आत्मविश्वास जगाकर,लक्ष्य की मंजिल दिखाता है

पाप एवं लालच त्याग कर, धार्मिक संस्कार सिखाता है
गुमनामी से बाहर लाकर, एक नई पहचान दिलाता है

अज्ञानता के भंवर से निकाल कर, नैया पार लगाता है
संचित ज्ञान का धन देकर, सबका जीवन संवारता है

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का योगदान सफल हो जाता है
शिष्य बुलंदियों को छूकर, गुरु चरणों में शीश झुकाता है।

Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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जन्माष्टमी

Image source: Internet

माँ देवकी ने जन्म दिया, माँ यशोदा का पुत्र कहलाए
एक हाथ में बंसी उसके, दूजे से मटकी फोड़ माखन चुराए

सबका प्यारा नटखट लाला, मैया यशोदा को बड़ा सताए
राधा को जलाने शरारती कान्हा, गोपियों संग रास लीला रचाए

रसिया कान्हा रक्षक बन, सभा में द्रोपदी की लाज बचाए
हर बच्चे को समझाए कृष्ण ज्ञान, तभी जन्माष्टमी सफल हो जाए।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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भारत की शान है तिरंगा

भारत की शान है तिरंगा
हमारा मान है तिरंगा

जवान की आन-बान है तिरंगा
दुश्मनों का बुरा अंजाम है तिरंगा

भारत की आवाम की पहचान है तिरंगा
भारतीयों का अरमान है लहराता तिरंगा

जीत का एलान है तिरंगा
किसान की जान है तिरंगा

हर एक इंसान का चारों धाम है तिरंगा
जिसके आगे मस्तक ऊंचा ऐसा चढ़ान है तिरंगा

तीन रंग से चमकता है हमारा तिरंगा
राष्ट्रीय गान में फहराए तिरंगा

भारत विकास का अभियान है तिरंगा
हिन्दुस्तान का अभिमान है तिरंगा

मेरे लिए मेरा ध्यान है तिरंगा
आज मेरी कविता का कलाम है तिरंगा

भारत की शान है तिरंगा
भारत की शान है तिरंगा।

Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’

स्वरचित / सर्वाधिकार सुरक्षित

देश के आजाद होने के बाद संविधान सभा में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 22 जुलाई 1947 को तिरंगे झंडे को राष्ट्रीय ध्वज घोषित किया था। हमारे देश की शान है तिरंगा झंडा।

आप सभी को तिरंगा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।🇮🇳

Image Credit: Google

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ईद मुबारक

दुआ करो कि हर इंसान को समझ आए इंसानियत,
ऐ मौला! तेरे हर बंदे की ज़बाँ में आ जाए तहज़ीब।

अहल-ए-जहाँ में छाए प्यार, मोहब्बत की नजाकत,
एक बार फिर से कुदरत की प्रकृति बन जाए जन्नत।

दुआओं की हो इतनी असर कि बदल जाये किस्मत,
हर दुआ क़ुबूल हो…. जिसने दिल से की हो इबादत।

सबको ख़ुशी मिले और पूरी हो जाए हर नेक हसरत,
ए ख़ुदा! इस ईद में मिटा दे सबके बीच है जो नफ़रत।

या अल्लाह! कोई गुमराह न हो करदे तू ऐसी हिदायत,
नमाज़ अदा करें शिद्दत से…मुश्किलों से पाले निजात।

आप सभी को ईद मुबारक🌙🌠

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

शुक्रिया😊

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कुछ क़समें झूठी सी

इज़हार-ए-इश्क़ में कुछ क़समें झूठी सी उसने खाई थी,
यक़ीन नहीं आता, क्या मोहब्बत भी झूठी दिखाई थी?

सरेआम नीलाम कर दिए उसने मेरे हर एक ख़्वाब को,
जिसने मेरे दिन का चैन औ मेरी रातों की नींद चुराई थी।

जिसे समझ बैठी थी मैं आग़ाज़-ए-मोहब्बत हमारी,
दरअसल वो तो मिरे दर्द-ए-दिल की इब्तिदाई थी।

यूँ तो नज़रअंदाज़ कर गई मैं उसकी सारी गलतियां,
मगर क्या अच्छाई के पीछे भी छुपी उसकी बुराई थी!

अब कैसा गिला और क्या शिकायत करूँ उस से!
जब दोनों के मुक़द्दर में ही लिखी गई जुदाई थी।

उसकी इतनी बे-हयाई और बेवफ़ाई के बावज़ूद भी,
माफ़ कर दिया उसे, ये तो ‘ज़ोया’ की भलाई थी।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

शुक्रिया🙂

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आग़ाज़-ए-शायरी

मेरी ज़िंदगी में तुम हो तो सब है
तुझसे शुरू मेरी सहर औ शब है
सजदा-ए-इश्क़ में सर झुका दूँ
कि मेरे लिए तो तू ही मेरा रब है।

★★★★★★★★★★★★★★★

है एक छोटी सी आशा, ऊँचे आसमाँ में उड़ना है स्वछंद,
है यही एक अभिलाषा, कोई कतरे ना मेरे ख़्वाबों के पंख।

★★★★★★★★★★★★★★★

कदम से कदम मिला के प्रेम डगर पर चलना है
हाथों में हाथ डाल के इसे कभी ना छोड़ना है
सफ़र-ए-मोहब्बत में बिछे हो चाहे लाखों शूल
आए कितनी भी रुकावटे मंज़िल को हमें पाना है।

★★★★★★★★★★★★★★★

इस जहाँ की नज़रों में बेनाम सा हमारा रिश्ता है,
है ये तड़प कैसी! कैसा रूह  के बीच वाबस्ता है!
हसरतें दम तोड़ रही हैं अब आहिस्ता आहिस्ता,
अवाम की फ़िक्र नहीं, तुझ से ही  मेरा वास्ता है।

★★★★★★★★★★★★★★★

हिज्र-ए-यार में दिन काट लिए उसकी यादों के सहारे,
आरज़ू-ए-विसाल-ए-यार में हर रात ख़्वाबों में गुजारे।

★★★★★★★★★★★★★★★

उर्दू शब्दों के अर्थ:- शब = रात / वाबस्ता = संबंध / हिज़्र-ए-यार = यार की जुदाई / आरज़ू-ए-विसाल-ए-यार = यार से मिलन की उम्मीद

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित / सर्वाधिकार सुरक्षित)

शुक्रिया

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पुरानी यादों की चादर

ख़ुशी, ग़म, प्रेम, धोखे के टुकड़े मिलाकर,
बुन ली है मैंने पुरानी यादों की चादर।

सुराख़ से सर्द हवा झाँकती, मैली, फटी सी,
फिर भी गर्माहट देती पुरानी यादों की चादर।

जब सितम ढाए तेज़ धूप और गर्म हवा,
अंगारों सी तपती जमीं पर बनती मेरा बिस्तर।

कभी सताए बुरे ख़्वाब, हो तन्हाई महसूस,
पुरानी यादों की चादर ओढ़ लेती हूँ लपेटकर।

ख़ामोशी से जब बहता है अश्कों का सैलाब,
बन जाती माँ का आँचल पुरानी यादों की चादर।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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धन्यवाद

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तारीफ़-ए-हुस्न

सुनहरी लहराती ये ज़ुल्फ़ें तिरी और ये शबाब,
कोमल नाज़ुक बदन तिरा जैसे महकता गुलाब।

बैठ गया तू सामने तो साक़ी की क्या ज़रूरत,
सुर्ख़ थरथराते ये लब तिरे जैसे अंगूरी शराब।

सहर में जब तू लेता अंगड़ाई ओ मिरे सनम,
तुझे चूमने फ़लक से उतर आता है आफ़ताब।

रौशन कर दे अमावस की काली अँधेरी रात भी,
मिरा हसीं माशूक़ जब रुख़ से उठाता है हिजाब।

तारीफ़-ए-हुस्न लिखने को बेताब है मेरी कलम,
ग़ज़ल क्या! ‘ज़ोया’ तुझ पे लिख दूँ पूरी किताब।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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शुक्रिया

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चल दूर कहीं

चल इस दुनिया से दूर कहीं हम दोनों चले जाते हैं,
नदी से मोहब्बत और फल से मीठा रस लाते हैं।

आसमाँ को चादर और जमीं को बिछौना बनाते हैं,
सूरज की रोशनी और ठंडी हवा से सुकून पाते हैं।

फूलों से खुशबू और चाँद से चाँदनी चुरा लाते हैं,
चलो उस जन्नत में जाकर आशियाना बनाते हैं।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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शुक्रिया

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नया साल मुबारक हो

कुछ डायरी के पन्ने भरेंगे इस साल में

पिछले बरस कई कोरे कागज़ छूट गए थे।

अब के बरस दिल के जज़्बात को बयां करना है कलम से

पिछले साल तो स्याही ही ख़त्म थी कलम में।

नये साल में कुछ नये दोस्त बन गए हैं

तो पिछले बरस के दोस्तों से कभी कभी बातें होती है।

कुछ दर्द चिल्ला उठे थे पिछले बरस में

अबके साल खुशियों की कविताएँ गाएंगे।

बहुत कुछ अधूरा रह गया पिछले साल में

बहुत ख्वाहिशें लेके दाखिल हुए हैं इस साल में।

बुरे लम्हे की कड़वी यादों को दफन कर दी है बंजर जमीं में

उन खूबसूरत यादों को जमा कर आए हैं बैंक के खाते में।

पिछले बरस में अब मुड़कर मत देखो

चल पड़ो आगे नया साल सब को मुबारक हो।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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Happy New Year💝🎉

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मुश्किल हो सकता है

बेशक अकेले चलना मुश्किल हो सकता है
लेकिन इस भीड़ में साथ चलने वाला है कौन?

बेशक सच बोलना मुश्किल हो सकता है
लेकिन झूठ बोलने से आगे निकल पाया है कौन?

बेशक दुःख में हंसना मुश्किल हो सकता है
लेकिन खुशी में खुलकर हँसने वाला है कौन?

बेशक दुश्मन से लड़ना मुश्किल हो सकता है
लेकिन लड़ाई में साथ देने वाला दोस्त है कौन?

बेशक किसी को खोना मुश्किल हो सकता है
लेकिन साथ होने के बावजूद यहाँ साथ है कौन?

बेशक सपने को साकार करना मुश्किल हो सकता है
लेकिन बिना सपनों के यहाँ सोता है कौन?

बेशक किसी को माफ करना मुश्किल हो सकता है
लेकिन बदला लेके यहाँ जीत पाया है कौन?

बेशक मंजिल तक पहुंचना मुश्किल हो सकता है
लेकिन यहाँ आसानी से महान बन पाया है कौन?

बेशक जीवन की पहेली हल करना मुश्किल हो सकता है
लेकिन अंत से पहले इस पहेली को हल कर पाया है कौन?

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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धन्यवाद।

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मरीज-ए-इश्क़

आजकल  कुछ अजीब  सा  मर्ज़ हुआ है,
मर्ज़ क्या, जैसे चुकाना कोई कर्ज़ हुआ है।

जाना हुआ मोहब्बत की दार-उल-शिफ़ा में,
बोला हक़ीम तुम्हें तो, दिल का दर्द हुआ है।

मर्ज़-ए-इश्क़  की  महंगी  पड़ी  है  तदबीर,
वस्ल-ए-यार  का इलाज  जो अर्ज़  हुआ है।

रूठा  है बीमारदार  इस मरीज-ए-इश्क़ का,
रूह-ए-जिस्म के पर्चे पर नाम दर्ज हुआ है।

ये साँसे  तो  चलती  है सनम  की खुशबू से,
क्या करें! मिरा महबूब  ही खुदगर्ज हुआ है।

परवा-ए-उम्मीद-ओ-बीम   न   कर   ‘ज़ोया’
इश्क़-ए-तबाही  में अक्सर ही  हर्ज हुआ है।

उर्दू शब्दों में अर्थ: मर्ज़=बीमारी/ दार-उल-शिफ़ा=अस्पताल/ तदबीर=उपाय/ वस्ल=मुलाक़ात/ बीमारदार=परिचारक /परवा-ए-उम्मीद-ओ-बीम=आशा की परवाह/ हर्ज=नुकशान

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

शुक्रिया।

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मेरी कविता

‘मेरी कविता’ उनवान पर आज हूँ लिखती मेरी कविता,
सिर्फ अल्फ़ाज़ नहीं, मेरे जज़्बात बयां कर जाती मेरी कविता।

मेरी कविता में लिखा है मैंने ज़िंदगी का तज़ुर्बा,
सिर्फ पंक्तियां नहीं, एहसास महसूस कराती मेरी कविता।

मेरी कविता फ़क़त एक दास्ताँ नहीं, ख़ुलूस-ए-निहाँ हैं,
सिर्फ तसव्वुर नहीं, हरेक मर्ज़ की दवा देती मेरी कविता।

मेरी कविता सिर्फ दुनयावी खूबसूरती नहीं दिखाती,
क़ायनात से मोहब्बत, रहम करना सिखाती मेरी कविता।

सिर्फ लय, छंद, अलंकार नहीं, मेरी कविता बजती तरंग है,
माँ शारदे की आराधना से है आती मेरी कविता।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

Note: यह रचना प्रकाशित हो चुकी है और कॉपीराइट के अंतर्गत आती है।

शुक्रिया।

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ग़ज़ल

अश्कों को मेरे तेल समझ दीया जला दिया,
लहू को मेरे मरहम समझ ज़ख़्म पर लगा दिया।

बेइंतहा फिक्र करते थे उनकी शाम-ओ-सहर,
उसने हमारी परवाह का भी दाम लगा दिया।

इश्क़ में नहीं निभा सके वो वादा-ए-मोहब्बत,
और बेवफ़ा का इल्ज़ाम हम पर ही लगा दिया।

मोहब्बत करके दिल तोड़ गया वो मतलबी
फिर दोस्ती का नाम देकर एहसान जता दिया।

वो क्या समझेगा ‘ज़ोया’ तेरी ग़ज़ल, शायरी को,
कागज़ पर उतरे जज़्बात को अल्फ़ाज़ बता दिया।

© Jalpa lalani (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Note: इसकी कॉपी करना मना है।

शुक्रिया।

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“यादगार पल” 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब माँ ने कहा तेरे क़दम पड़ते ही 

नये घर रूपी मिला हमें एक फल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब हर वक़्त पीछे घुमा करती थी 

पकड़े माँ का आँचल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब माँ के साथ जाती थी 

नदी किनारे लेने जल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब बापू की फटकार से मिलता था 

गणित का हर हल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब बापू रेहते थे हर नियम में अटल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब बापू के घर पर न होने पे 

किया करते थे उनकी नक़ल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब बहन के साथ छत से निहारती थी बादल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब सर्दी की रातों में ओढ़ लेती 

थी बहन का कम्बल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब बहन के साथ झूम उठती थी 

मैं भी पहने पायल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब भाई के पीछे-पीछे चल 

पड़ती थी मैं भी पैदल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब भाई के साथ 

मचाती थी उथल-पुथल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब बाहर चली जाती थी 

पहनकर भाई की उल्टी चप्पल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब साथ बैठकर खाते थे दाल-चावल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब साथ बैठकर देखते थे दूरदर्शन 

जैसे सज़ा हो एक मंडल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

प्यार भरी नींव से बनता है 

मेरा परिवार मुक्कमल। 

हाँ! याद है मुझे आज भी यह सारे पल 

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Note: यह रचना पब्लिश हो चुकी है। यह रचना कॉपीराइट के अंतर्गत है।

धन्यवाद।

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कली से फूल

एक माली ने बोया है एक बीज मिट्टी में 

एक तरफ़ एक बीज पनप रहा है माँ की गोद में। 

दिन-रात की मेहनत से बीज डाली बन जाता है 

माँ की कोख़ में पोषित होकर वह बीज भी बच्चे का स्वरूप लेता है। 

एक दिन सूरज की किरणों से डाली पर कली निकल आती है 

एक प्यार की निशानी पिता की परछाई से एक बच्ची जन्म लेती है। 

कली खिलते ही पहली बार रंग-बिरंगी दुनिया देखती है 

नन्ही सी बच्ची मुस्काते हुए माँ की गोद में खिलखिलाती है। 

खुश्बू कली की फैल कर पूरी बगिया महकाती हैं

मंद-मंद किलकारियों से घर की दीवारें गूंज आती हैं। 

देखते ही देखते एक दिन कली फूल बन जाती है 

नन्ही सी बच्ची खेलकुद कर पढ़-लिख कर एक दिन शबाब कहलाती है। 

फूल की सुंदरता को देख सब उसकी और खिंचे चले आते हैं

यौवन की खूबसूरती देख हर कोई आकर्षित हो जाते हैं।

मानव फूल को तोड़कर, कोमल पंखुड़िया मसल कर फेंक देता है 

घर की प्यारी को उठाकर, सौंदर्य को अभिशाप में बदल देता है। 

फूलों को बगिया में रहने दे उसकी जगह ईश्वर के चरणों में हैं

है मानव, गर लक्ष्मी इतनी प्यारी है तो हर नारी की जगह मंदिर में हैं।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Note: यह रचना पब्लिश हो चुकी है। यह रचना कॉपीराइट के अंतर्गत है।

शुक्रिया।

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पल-पल

कलयुग के इस संसार में पल-पल इंसान रूप बदलते हैं

समंदर रूपी जीवन में पल-पल हालात रुख़ बदलते हैं

स्वार्थ के बने आशियाने में पल-पल बदलते रिश्ते हैं

हीरे भी तभी चमकते हैं जब बार-बार उसे घिसते हैं

आधुनिकता के बाजार में पल-पल ख़रीददार बदलते हैं

कहानी में भी तभी मोड़ आता है जब किरदार बदलते हैं

वक़्त कहाँ रुकता है पल-पल करके साल भी बदलते हैं

ठहरा कौन है यहाँ चलने वाले हर चाल भी बदलते हैं

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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भारत के राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि

Image credit: Google

क्या श्रद्धांजलि दूँ उनको क्या लिखूं उनके बारे में

ख़ुद दो हाथ से लिखते थे क्या मैं लिखूं उनके बारे में

सत्य, अहिंसा, प्रेम, धर्म, जैसे लगाते थे नारे

जिसके आगे तोप, बारूद, और गोरे भी हारे

बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो

सीख सीखाते बापू के तीन बंदर

आज अन्याय देखकर अँधे बन बैठे हैं सब लोग

मदद के लिए पुकारती आवाज़ को अनसुना करते हैं लोग

बात बात पर अशिष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं लोग

क्या यही सीख ली इन बंदर से?

पूरा जीवन बिता दिया हमें आज़ाद करने में

आज वही आज़ादी का फ़ायदा उठा रहे हैं लोग

मिटाया उन्होंने ऊँच-नीच के भेदभाव को

बढ़ाया हमने ग़रीब-तवंगर के भेदभाव को

स्वदेशी उत्पादन को अपनाया ख़ुद चरखा चलाकर

भारतीय उद्योग को क्या उपहार देंगे हम विदेशी अपनाकर!

साफ रखें सब घर, गली, आँगन, उद्यान

सच में यही है स्वच्छ भारत अभियान

नहीं हराया जाता है किसी को हिंसा से

जीता जा सकता है किसी को अहिंसा से

आज़ादी के लिए कई बार गए है जेल किया है आमरण अनसन

आज एक दिन के व्रत पे भी नहीं कर पा रहे हैं अनसन!

तो आओ अपनाएं गांधी के विचारों को आज

शायद यही दी जाए उनको श्रद्धांजलि आज।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया

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सपनों की बारात

पलकों के रथ पे सवार होकर, सपनों की बारात आ गई
सितारों की चुनरी ओढ़कर, रात दुल्हन सी सज गई

चाँदनी से सजा आसमाँ का मंडप, हवा बजाये शहनाई
बाराती बन बादल झूम रहे, खुशियों की बौछार है छाई

आफ़ताब से सेहरा हटाकर, उम्मीद की किरण है आई
सुबह का हुआ स्वागत, रात की हो गई फिर बिदाई।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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यादों के उजाले

शाम ढले तेरी यादों के उजाले में चली जाती हूँ अक्सर,
शब-ए-हिज़्र में फ़लक के चाँद में तुम्हें पाती हूँ मयस्सर।

शाम-ए-ग़म में बढ़ जाता है इस क़दर तन्हाई का तिमिर,
धुएँ से उभरती तस्वीर तेरी, प्रीत का दिया करती हूँ मुनव्वर।

माज़ी में तेरे साथ बिताए खूबसूरत लम्हात हमें याद आते हैं,
ख़्यालों में आगोश में आकर, तेरी खुश्बू साँसों में लेती हूँ भर।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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एक ख़त उनके नाम

दिल के कागज़ पे एक ख़त उनके नाम लिख रही हूँ
बेशक़ बग़ैर पते का है वो मुक़ाम, जहाँ भेज रही हूँ

मन में उठते हर सवाल का उससे जवाब मांग रही हूँ
धोखे से मिले ज़ख्मों का, उससे मरहम मंगा रही हूँ

न समझे लफ़्ज़ों की बोली, सिर्फ एहसास जता रही हूँ
सारे रिश्ते नाते तोड़ के उससे गहरा रिश्ता बना रही हूँ

पहुँच जाए ख़त दर-ए-मक़सूद पे, यही राह देख रही हूँ
समा जाऊँ नूर-ए-खुदा में, ख़ुद को काबिल बना रही हूँ।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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जज़्बात की ग़ज़ल

मेरे दिल में दफ़न जज़्बात कभी उभर जाते हैं,

ये कागज़ कलम वो एहसास बयाँ कर जाते हैं।

मन के भंडार में छुपे ख़यालात,भावों में पिरोकर,

अनकहे अल्फ़ाज़ को कागज़ पर उतार जाते हैं।

रच  जाती है  पूरी किताब दास्ताँ-ए-ज़िंदगी की,

कि जज़्बात की ग़ज़ल से हर सफ़ा भर जाते हैं।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

शुक्रिया।

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बड़ों का साया

तपती धूप में है घने दरख़्त सा बड़ों का साया
ग़म के अँधेरे में हैं ख़ुशियों सा जगमगता दिया

सफ़र-ए-ज़ीस्त में हरदम उसे साथ खड़े हैं पाया
ख़्वाहिश हुई मुकम्मल दुआ में जब हाथ उठाया

सिरातल मुस्तक़ीम का रास्ता उसने है दिखाया
ख़ुशनसीब हैं वो जिसके सर पर है बड़ों की छाया।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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Watch “#shayri #poem सजा-ए-इश्क़ में ऐसा ज़ख्म खाया मैंने Poem by Jalpa Kalani ‘Zoya’ / POETRY STAGE” on YouTube

Hello, friends

Mujhe aap sab ki madad ki aavshyakta hain. YouTube me jaakar mere is video me likes aur comments karen. Aur jitna ho sake mere video ko share karen.

Thank you in advance.😊🙏

© Jalpa lalani ‘Zoya’

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किताब-ए-ज़ीस्त

किताब-ए-ज़ीस्त के असरार खुल रहे हैं,
हर पन्ने पर कहानी के किरदार बदल रहे हैं।

खुशी की स्याही से लिखी हैं कुछ इबारत,
तो कोई कागज़ गम-ए-हयात से जल रहे हैं।

पीले ज़र्द पन्ने की कोने में पड़ी हैं सिसकती,
राज़ बेपर्दा होते ही हर इक सफ़ा मसल रहे हैं।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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भाई की कलाई

Image Source: Internet

प्रेम रूपी राखी जुड़ी जज़्बात के नाजुक धागे से
रेशमी रिश्ते की राखी गुँथी है रक्षा के वचन से
स्नेह के बंधन में बांधी गई एक अटूट विश्वास से
खट्टी मीठी नोकझोंक से बनी सुनहरे प्यारे रंगों से

बड़े इंतज़ार के बाद घर खुशियां लेके बहन आई
कुमकुम, चावल, राखी, मिठाई से थाली सजाई
सूनी थी जो,आज चाँद सी चमके भाई की कलाई
हरख भाई का दिखे, बहन कुमकुम तिलक लगाई

प्यारी बहना को आज भाई ने दिया अनमोल उपहार
दुनिया में सबसे अनोखा है भाई-बहन का प्यार
माँ जैसे करती दुलार, बेटी के बिना अधूरा परिवार
जग के सारे पर्व में सबसे न्यारा है राखी का त्यौहार।

🌸आप सभी को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ🌸

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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बहुत कुछ बाकी है

बहुत कुछ बाकी है तेरे मेरे दरमियाँ,
तेरी याद में अभी आँखें भर आती है।

मोहब्बत से ऊँचा नहीं यह आसमाँ,
पर तूने हर दम इसे जमीं से नापी है।

सफ़र-ए-इश्क़ की हुई है शुरुआत,
अभी तो ये सिर्फ़ प्रेम की झांकी है।

बहुत कुछ बाकी है तेरे मेरे दरमियाँ
दूरीमें नज़दीकी का एहसास काफ़ी है।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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नज़रें चुराने लगे वो

हुआ है मलाल अब ख़ुद से नज़रें चुराने लगे वो,
करके गुस्ताखी-ए-जुर्म अवाम से मुँह छुपाने लगे वो।

बिना सबूत सच्चाई साबित नहीं होती अदालत में,
औरों पर इल्ज़ाम लगाके गुनाह पर परदा गिराने लगे वो।

झूठ की चीनी मिलाके सच का कड़वा शर्बत पिया नहीं गया,
आबेहयात में जहर घोलकर सबको पिलाने लगे वो।

अल्लाह के दर पे सिर झुकाकर सजदे में करते है तौबा,
होकर बेख़बर ख़ुदा की नज़रों से राज़ दफनाने लगे वो।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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सड़को पर समंदर

आज की बारिश को महसूस कर के कुछ ज़हन में 

आया है जो कागज़ पर उतर आया है। 

उफ्फ़ ! क्या ढाया है कुदरत का क़हर 

जैसे बह रहा है सड़को पर समंदर। 

जिस बारिश से आती है चेहरे पर ख़ुशी 

आज वह बारिश क्यों हुई है गमगीन। 

दौड़ आते थे बच्चे बारिश में खेलने बाहर 

आज वह डर के बैठे हैं घर के भीतर। 

दुआ करते थे पहली बारिश होने की 

आज दुआ कर रहे हैं उसे रोकने की। 

यह गरजता हुआ बादल जैसे रोने की सिसकिया 

यह चमकती हुई बिजली जैसे आँखों की झपकियां। 

क्या गलती हो गई हम इन्सान से ऐ ख़ुदा

क्यों आज बादल को पड़ रहा है रोना। 

अब नही सुनी जाती बादल की यह सिसकिया 

साथ मे सुनाई देती हैं किसानों की बरबादियाँ। 

संभल जा ऐ इन्सान, है इतनी सी गुज़ारिश 

सर झुका दे कुदरत के आगे तभी रुकेगी यह बारिश। 

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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कोशिश की जाए

कुछ ना करने से बेहतर है थोड़ी सी कोशिश की जाए
धर्म निभाते तंगदस्त को थोड़ी सी बख़्शिश दी जाए

ज़्यादा पाने की चाह में जो पास है उसे ना खो देना
आँख बंद करके सही ख़ुद से कुछ ख़्वाहिश की जाए

थोड़ी ज़्यादा मशक्कत करने से मुक़ाम ज़रूर पायेगा
नई शुरुआत से पहले बड़ो की दुआ, आशीष ली जाए।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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मैं एक पिता हूँ

हाँ! मैं एक पिता हूँ, बाहर से दिखता बहुत सख़्त हूँ
मगर बच्चों की आँख में आँसू देखकर टूट जाता हूँ

हाँ! फ़ोन पर ज़्यादा किसीसे बात नहीं करता हूँ
मगर दिल में सबके लिए एहसास मैं भी रखता हूँ

सबकी मन मर्जी करने नहीं देता, टोकता बहुत हूँ
मगर बच्चों की बेहतरी के लिए ही ये सब करता हूँ

हाँ! जब याद आए बेटी की तो जताता नहीं हूँ
मगर कभी रात के अँधेरे में मैं अकेला रो लेता हूँ

सब कहते है मैं सिर्फ़ अपने लिए ये सब करता हूँ
मगर ज़िम्मेदारियों से कभी मैं भी तो थक जाता हूँ

मेरे जाने के बाद कभी मेरी कमी खलने नहीं देता हूँ
ये एहसान नहीं है, फ़र्ज़ है मेरा क्योंकि मैं एक पिता हूँ।

~Jalpa lalani ‘Zoya’

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वक़्त गुज़रता गया

वक़्त गुज़रता गया और हमारे बीच दुरियाँ भी बढ़ती गई
दिल का ज़ख़्म गहरा हुआ और यादें नासूर सी बनती गई

तू हँसते हुए छोड़ गया मेरी साँसें तिनका तिनका बिखर रही
तेरी बातों से दिल बिलख उठा और धड़कन भी रुक सी गई

ख़ुशी का वादा था किया और तोहफ़े में दे गया तू तन्हाई
बदलते मौसम के साथ तू बदल गया मैं वही पर ठहरी रह गई।

~ Jalpa lalani ‘Zoya’

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सुबह होने वाली है

चाँद की मद्धम रोशनी तले बाहों के बिस्तर में पूरी रात गुजारी है
प्यार भरे लम्स से कोमल कली खिलकर खूबसूरत फूल बन गई है

दो जिस्म के साथ रूह के मिलन की सितारें देने आए गवाही है
दोनों बहक कर इश्क़ में पिघल रहे इस नशे में रात हुई रंगीन है

मिलन की प्यास है अधुरी, सूरज की किरणें धरा को चूमने वाली है
दिल में अजीब सी बेताबी है पर तुम जाओ प्रिये सुबह होने वाली है।

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क्यों जा रहे हो?

ज़िंदगी की जंग से हार कर यूँ मुँह मोड़कर तुम क्यों जा रहे हो?
अँधेरे में जाकर अपने ही अक्स को ख़ुद से क्यों छुपा रहे हो?

दुनिया की भीड़ से दूर सारे बंधन तोड़कर अकेले कहाँ जा रहे हो?
ख़ुद की आँखे बंद करके अपने आपसे ही क्यों नज़रें चुरा रहे हो?

तन्हाई छोड़ इस जहाँ की महफ़िल में तुम अपनी पहचान बनाओ
अँधेरे रास्ते की वीरानगी में उम्मीद की लौ से तुम रोशनी जलाओ

आँखों में है जो अधूरे ख़्वाब मुकम्मल करके उसे हकीकत बनालो
अपनो के साथ मिलकर बेरंग ज़िंदगी में खुशियों के रंग तुम भरलो।

~Jalpa ‘Zoya’

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निर्दोष जीव

एक निर्दोष जीव भटक गया था रास्ता, जंगल के पास दिखा उसे एक गाँव
इधर-उधर भटक रहा भूखा-प्यासा, इंसानो को देख जगी उसे एक आशा

मन मे सोचा इंसान में होती है मानवता, क्या पता था इंसान के रुप में था दरिंदा
क्यों खिलाया भूखे जीव को विस्फोटक अनानास, कहाँ गई थी इंसान की इंसानियत

पेट की आग तो न बुझी उसकी, पर उस विस्फोटक ने हथनी का मुंह दिया जला
अपनी फ़िक्र नहीं थी उस माँ को, फ़िक्र थी उसे जो पेट में पल रहा था एक बच्चा

हो गई थी ज़ख्मी फिर भी थी उसमें दया नहीं किया उसके हत्यारों का कोई नुकसान
उन हैवानों को जरा भी रहम नहीं आया, जो दो बेजुबानों की बेरहमी से ले ली जान

सिर्फ भूखी थी माँ और आख़िर क्या कुसूर था उसका जो अभी तक जन्मा नहीं था
ऐसे क्रूर कृत्य से किसीकी भी रूह काँप जाए, पर वो हत्यारे तो हुए भी नहीं शर्मसार

धीरे-धीरे विनाश हो रहा है सृष्टि का, इंसान क्यों नहीं समझ रहे है ईश्वर का इशारा
ऐ ईश्वर! दे मुझे एक जवाब, ऐसे हैवानों के कृत्यों की निर्दोष जीव क्यों भुगतें सजा?

~Jalpa ‘Zoya’

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सुरक्षित रहें

हुआ एक और प्रकृति का कहर, कैसी है ये कुदरत की नाराज़गी
ख़त्म कहाँ हुई कोरोना महामारी, अम्फान तूफ़ान ने मचाई तबाही

बख़्श दे हम सभी को मौला, करते है साथ मिलकर यहीं विनती
भुगत रहे हैं हानि, अब शांत कर इन तूफानों की अफ़रा-तफ़री

ऐ ख़ुदा सब सुरक्षित रहें कर दे ये इनायत, सुन ले ये दुआ हमारी
आपदा की इस मुश्किल घड़ी में, बस साथ है एक रहमत तुम्हारी।

~Jalpa

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“माँ अनमोल है” 

कहते है हर एक के जीवन में कोई न कोई प्रेरणा बनकर आता है 

पिता, माँ, भाई, बहन, दोस्त, सेलेब्रिटी, या फ़िर कोई अजनबी 

वैसे ही मेरे जीवन में मेरी प्रेरणा बनी मेरी माँ। 

बचपन से देखती आ रही हूँ तब समझ थोड़ी कम थी 

आज समझ में आया माँ के अंदर कितनी ख़ासियत थी। 

माँ की दिनचर्या सुबह के पहले पहर से शुरू हो जाती 

सर्दी हो या गर्मी पहले घर का आँगन साफ़ करती। 

नाहकर प्रभु का ध्यान धरती, घर मे भी साड़ी पहनती 

उनकी वो बिंदी, वो चूड़िया, आँखों का वो सूरमा 

हमारे उठने तक तो चाय-नास्ता भी बन जाता। 

मेरे भी थे अरमान माँ के जैसा पहनावा मैं भी पहनूँगी 

बड़ी हो कर कुछ अवसर पर भी बड़ी जहमत से सब संभाल पाती। 

कैसे कर लेती थी माँ ये सब पहनकर भी घर का सारा काम 

सबकी जरूरते पहले पूरी करती अपना ख़ुद का कहा था उसको ध्यान। 

एक तो घर का काम, फ़िर बाहर पानी भरने जाना 

क्या इतना कम था कि मंदिर में भी करती थी समाज सेवा। 

कहाँ से मिलता था इतना समय, आज सब सुख-सुविधा 

के बावजूद भी हम कहते है समय कहाँ है हमारे पास। 

हमें पढ़ाना-लिखाना, तैयार करके पाठशाला भेजना 

सब की पसंद का खाना बनाना 

जितना लिखूं उतना कम पड जाए 

शायद माँ पर लिखने के लिए दुनिया के सारे कागज़ भी कम पड़ जाए। 

खाना पकाना सिखाती, तमीज़ से बात करना सिखाती 

घर के सारे काम से लेकर बाहर की दुनिया का ज्ञान भी देती। 

रात को बिना भूले दूध देती कभी मना करे तो डांट कर भी पिलाती 

पूरे दिन का हाल बतियाती, बड़े प्यार से साथ में सुलाती। 

सब के सोने के बाद आख़िर में वो सोती सर्दी में आधी 

रात में अपना कम्बल भी हम बच्चों को ओढ़ाती। 

फ़िर भी सुबह पहेले उठ जाती, आज तक नहीं पूछा, 

आज पूछती हूँ ऐ माँ ! क्या तुम थक नहीं जाती? 

बताओ ना माँ, क्या तुम थक नहीं जाती? 

हमें साफ सुथरा रखना, खाना खिलाना, दूध देना 

पढ़ाना, हमारे साथ खेलना नित्यक्रम था उनका। 

पता नही क्या बरकत है उनके हाथों में 

थोड़े में भी कितना चलाती फ़िर भी कभी पेट रहा न हमारा खाली। 

इतनी उम्र में भी आज है वो चुस्त-दुरुस्त आज भी वो कितना काम कर लेती 

फ़िर भी टी. वी. पर अपनी पसंदीदा सीरियल छूट ने नहीं देती। 

मुझे कहती है तू अकेली कितना काम करेगी 

इतनी छोटी उम्र में भी माँ जितना मैं नही कर पाती। 

माँ का कोई मोल नहीं ,माँ तो अनमोल है 

आज मैं जो भी हुँ, जो भी मुझे आता है 

मेरी माँ के दिये संस्कार है, मेरी माँ का दिया प्यार है। 

सब कहते है मैं माँ की परछाईं हूँ 

पर माँ मैं तेरे तोले कभी ना आ पाऊँगी 

मेरी माँ मेरी प्रेरणा है, मेरी माँ मेरे लिये भगवान है। 

बस इतना ही कहना चाहूँगी 

अब अपने आँसुओं को रोक ना पाऊँगी 

इसके आगे अब लिख ना पाऊँगी…. 

इसके आगे अब लिख ना पाऊँगी…. 

~Jalpa

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You are that colour

You are that colour

Which glows my face.

You are that colour

Which colours my lips.

You are that colour

Which brightens my eyes.

You are that colour

Which beats in my heart.

You are that colour

Which running in my veins.

You are that colour

Which colours my dreams.

You are that colour

Which makes my life colourful.

© Jalpa lalani ‘Zoya’

Thanks for reading!

Posted in #poetry

पावन धरती

सुनो मानव! कुदरत ने पावन धरती सभी जीवों के लिए दी है
धरती पर पाप बहुत बढ़ गए है, ये उसका नतीजा आज मिला है

प्रकृति से जो खिलवाड़ किया है, अब कुदरत नाराज़ हुआ है
बर्बादी अभी कम ही हुई है, ईश्वर ने सबको किया आगाह है

अहम अपना छोड़ो मानव, प्रकृति की नाराज़गी अभी जारी है
अभी भी वक़्त है संभल जाओ, वरना अब हमारी बारी आनी है

इंसान भूल गया इंसानियत है, जानवरों ने इंसानियत सिख ली है
प्रलय आ रहा किस्तों में है, कही प्रकृति अपना आँचल खींच न ले।

~Jalpa

Posted in #poetry

मीठा अहसास

तुम्हारी यादों का मीठा अहसास
तेज़ कर जाता है मेरी धड़कन

तुमसे मिलन की वो झूठी आस
बहुत बेचैन कर जाती है मेरा मन

तुम्हारी आग़ोश में आने की प्यास
तड़प उठता है मेरा कोमल बदन

तुम बिन कटती नहीं ये अँधेरी रात
देखूँ मैं सिर्फ ख़्वाब होकर मन मगन

तुम्हारी प्यार भरी वो हरएक बात
आज भी भिगा जाती है मेरे नयन।

~Jalpa

Posted in #English, #poetry

God is always there

God poem

God is my father.

God is my mother.

God is my brother.

God is my sister.

God is my friend.

God is with me.

God talks with me.

God walks with me.

God is always there

When I was afraid.

God is in the stars.

God is in the moon.

In the sun, in the sky.

God is not separate from us.

God exists every where.

~Jalpa

Posted in #English, #poetry

A Home

This structure is made by love bricks
Warmth sand and cement of affections

The walls laugh with happiness
The decor shows brightness

The doors teach positivity
The windows look hopefully

Concern and protection of parents
fight and affection of siblings

Share moments together
happiness or sorrows.

~Jalpa

Posted in #poetry

अनुशासन

रहना है अनुशासन में, करना है समस्या का निवारण

सरकार कर रही निदर्शन, रोक दो सब कार्यक्रम

घर मे रहना ही है अतिउत्तम, साथ में करो मनोरंजन

ख़ुद को करो आइसोलेशन, बस करो थोड़े दिन परिवर्तन

जो भी सेवा में है जुड़े, उन सभी को मेरा अभिनंदन

अपनाए इसे हर मानव, मत करो इसमें ऑब्जेक्शन

सावधानी बरतें,  करे परहेज़, तभी होगा कोरोना नियंत्रण

बनाये रखो संयम, चल रहा है वैक्सीन का परीक्षण।

~ Jalpa

Posted in #poetry

मंजिल

आज देखो पूरी दुनिया की मंजिल एक हुई है

घर में रहकर भी दुनिया एक रास्ते पर चल रही है

हर देश कोरोना पर जीत हासिल करना चाहता है

सब दुआ में हाथ उठाकर एक ही दुआ मांग रहे है

हम सबका हौसला ही बना आज हमारा सहारा है

रखना है हमें सब्र साथ में ख़ुदा की रहमत भी तो है

धीरे-धीरे करके रास्ता ख़तम होगा और मंजिल पाएंगे

यह मत भूलना सफ़र में कुछ सबक हमें सीखना है।

~ Jalpa

Posted in #poetry

चल रहे हालात

सोचा चल रहे हालात का कुछ बयां लिखूँ

सामाजिक दूरी या परिवार की नजदीकी लिखूँ

सुनसान रास्ते या धरती को मिला सुकूँ लिखूं

पिंजरे में बंध इंसान या आज़ाद उड़ता पंछी लिखूँ

वीरान मंज़र या चलते मजदूर की कतार लिखूँ

रद्द हुई परीक्षा या ज़िन्दगी में आया इम्तहान लिखूँ

कोरोना के साथ जंग या भूखे पेट की तलब लिखूँ

ठहरी ज़िन्दगी या मौत और ज़िन्दगी में छिड़ी जंग लिखूँ

हिन्दुस्तान पर ताला या खींची हुई लक्ष्मण रेखा लिखूँ

पशुओं पर अत्याचार या इंसान का इंसान पर वार लिखूँ

कुदरत के साथ खिलवाड़ या रक्षकों का बखान लिखूँ

सोचा चल रहे हालात का कागज़ पर कुछ बयां लिखूँ।

~ Jalpa

Posted in #English, #poetry

Lock Down

It is for our best, this lock down is must

We all have to keep courage and patience

One can’t stop this pandemic alone

We’ll have to fight against this together

This is very easy to say but difficult to bear

But it’s all about only for our care

Don’t  panic, nothing to fear

Essential services are open for survival

Roads are empty, birds seems happy

pollution is much down and climate has become airy.

This is a gesture of nature to save the nature

It’s time to understand that the soul resides in every creature. 

~ Jalpa

Posted in #poetry

खतरे में अस्तित्व

ऐ इंसान! तूने खूबसूरत सी धरा को, बदसूरत है कर डाला

बेजुबां जानवरों पर अत्याचार करने का, मिला है यह नतीजा

यह वहीं सृष्टि है जहाँ साथ रहकर भी, करते थे आपस में झगड़ा

आज देखो दूर रहकर भी, हुआ है एकजुट संसार सारा

हर जीव में है आत्मा बसती, कर रहा है यही कुदरत इशारा

सर झुका दे कुदरत के आगे, लेना है तुझे अब उसका सहारा

देख ए इंसान अभी भी वक़्त है तेरे पास, तू संभल जा जरा

वरना और भी खतरे में, पड़ सकता है अस्तित्व हमारा

जब तक न हो इसका समाधान, बस घर में ही बैठे रहना

इस तरह ही हमारे अस्तित्व को, ख़ुद हमें बचना होगा।

~ Jalpa

Posted in #poetry

मेरी कविता

कविता पर लिख रही हूँ आज मैं कविता 
कविता पर लिख रही हूँ आज मैं कविता 

मेरी कविता में सिर्फ़ अल्फ़ाज़ नही है 
मैंने बयां किया है मेरा हाल-ए-दिल है 
मेरी कविता में सिर्फ़ पंक्तियां नही है 
मैंने महसूस की हुई एक अनुभूति है 

मेरी कविता में सिर्फ़ संसार का अनुभव नही है 
मेरी ख़ुद की जिंदगी का लिखा मैंने तज़ुर्बा है 
मेरी कविता सिर्फ़ एक कल्पना नही है 
मेरी कविता हर एक मर्ज़ की दवा है 

मेरी कविता सिर्फ़ दुनयावी सौंदर्य नही दिखाती 
प्रकृति से प्रेम, दया, और करुणा है सिखाती 
मेरी कविता सिर्फ़ एक कहानी नही है 
मेरी कविता में बसा मेरा अनुराग है 

मेरी कविता में सिर्फ़ कड़ियाँ नही है 
मेरी कविता जैसे बजती एक तरंग है 
मेरी कविता में सिर्फ़ लय, छंद नही है 
मेरी कविता माँ सरस्वती की प्रेरणा से है। 

~ Jalpa

Posted in #poetry, #science

Social distancing

A subtle virus deserted

the whole world

All roads are empty, 

lockdown all schools and malls

Do not gather together

But not to worry

do appreciate each other

It’s time to come closer

Stay indoors but it’s not 

about social distancing

Enjoy all family member’s

Love and make it interesting

Keep personal hygiene

Pay more attention

Wash your hands 

Wear mask on face

But spread affection

Eat healthy food

Cook with your partner

Have fresh meal 

on table together

Do work from home

But don’t let 

society distance

Don’t panic over condition

but Don’t forget 

about your safety

Awake all the people

Around you seriously

Remember that prevention

Is better than cure

But it’s not just a quote

Don’t fear of the 

Corona pandemic 

Just be strong.

~ Jalpa

Posted in #English, #poetry

” A Fear “

I had a fear of School

Have to follow list of rules.

I had a fear of Elder’s fight

When I was a child.

I had a fear of Alarm

During the time of my exams.

I had a fear to feel Unsafe

Keep the world away myself.

I had a fear to Travel

Of motion sickness little.

I had a fear of telling the Truth

Because would be fool in group.

I had a fear of Marriage

For leaving all family members.

I had a fear of Beating

By angry husband’s bad dealing.

I had a fear of Divorce

For prestige loss, by family’s force.

I had a fear of losing People

When lost my sister, feel pain of heart deeper.

I had a fear about my Health

Some suspicion seen in X-ray Itself.

No need to worry about of Fear

Have to fight against it’s not Severe.

Turn your fear into more Power

Love your fear, make it your Dear.

~ Jalpa

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कोरोना

इक और आविष्कार किया खाने के शौकीन चीन ने
सीमाओं से निकलकर खतरा फैलाया पूरे विश्व में

तुलसी, अदरक, गिलोय, सब अपने-अपने नुस्खे बताते है
कौनसा इलाज! पक्का नहीं पता कौनसा काम आता है

वो दिन गए सब भूल जब अभिवादन में हाथ मिलाए जाते थे
आज भारत के नमस्कार के संस्कार को पूरी दुनिया ने अपनाया है

साँस से साँस मिलाकर जीवनदान देते कभी सुना था
अब साँसों में समाकर कोरोना साँस छीन जाता है

कभी हिफाज़त-ए-हुस्न को परदा गिराया करते थे
आज रक्षा हेतु हरएक मुँह पर नक़ाब लगाएं फिरते है

गर रोकना हो विषाणु का संक्रमण होते हुए
सब मिलकर एहतियात बरतें, वरना गंभीर खतरा बन सकता है

कहाँ से पैदा हुआ यह कोरोना, या है कुदरत का कोई इशारा
जल्द ही इसका समाधान खोजें, हरकोई यही उम्मीद लिए बैठे है।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

धन्यवाद।

Posted in blog, Englishpoem, Poetry

My favourite colour

My favourite colour is white 

Because when I feel dark, it gives me light.

My favourite colour is blue

Because when I feel down, it reminds my value.

My favourite colour is green

Because when I feel old, it keeps me sweet sixteen.

My favourite colour is yellow

Because when I feel alone, it connects me with good fellows.

My favourite colour is pink

Because when I start to drown my mind, it becomes my brink.

My favourite colour is red

Because it keeps my worth alive, when my self love fade.

My favourite colour is black

Because when I go to my dark days, it brings me back.

You should love all the colours

Because they never let your life become colourless.

© 2020 Jalpa lalani ‘Zoya’ All rights reserved.

Thank you for reaching!

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होली है!

मुझे याद आती बचपन की वो होली

एक साथ निकलती हम बच्चों की टोली

रंग, गुलाल, पानी के गुब्बारे, और पिचकारी

कर लेते थे अगले दिन सब मिलके तैयारी

रंग-बेरंगी कपड़े हो जाते

जैसे इन्द्रधनुष उतर आया धरती पे

रंग जाते थे संग में सब के बाल

ज़ोरो ज़ोरो से रगड़ के लगाते गुलाल

बाहर निकलते ही सब को डराते

किसीके घर के दरवाज़े भी रंग आते

सामने देखते बड़े लड़को की गैंग

सब को चिड़ाते वो सब पी के भांग

वो सब के साथ मिलके गाते गाने

वो चिल्लाते जाते… होली है…!

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

धन्यवाद।

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क्यों?

सहनशीलता पत्नी की ऐसी सीता सी तू
फ़िर दहेज की लालच में तुझे दुत्कारते हैं क्यों?

त्याग प्रेयसी का ऐसी राधा सी तू
फ़िर अपमानित की जाती है हर जगह क्यों?

सुंदरता स्त्री की ऐसी अहल्या सी तू
फ़िर एसिड से तेरी सुंदरता को नष्ट करते हैं क्यों?

पावनता पौधे की ऐसी तुलसी सी तू
फ़िर भ्रूण में तेरी हत्या की जाती हैं क्यों?

कोमलता फूल की ऐसी गुलाब सी तू
फ़िर जिंदा तुझे जलाया जाता हैं क्यों?

पवित्रता नदी की ऐसी गंगा सी तू
फ़िर तेरे चरित्र पर लांछन लगाया जाता हैं क्यों?

रस भक्ति का ऐसी मीरा सी तू
फ़िर लड़ती जब न्याय को तो आवाज़ दबाई जाती हैं क्यों?

पतिव्रता अर्धांगिनी की ऐसी उर्मिला सी तू
फ़िर आज भी सुरक्षित नहीं है नारी, आप ही बताए क्यों?

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Note: यह रचना प्रकाशित हो चुकी है और कॉपीराइट के अंतर्गत आती है।

धन्यवाद।

Posted in blog, Englishpoem, Poetry, women's Day

The Lady Leader

Yes! I am the leader,

I climbed difficult steps of a ladder.

Faced Ignorance, Gained Tolerance,

Never gave up by performance.

Stayed with strangers without any honour,

With smile on face, no time for mirror.

Surrendered my body, even my soul,

But underestimated my whole role.

Made up my mind for taking a decision,

Not to allow revision, keep doing supervision.

Known by my personality,

Increase my inner quality.

Have to cross road without feeling loss,

Raise your voice, Be your own boss.

Hey! Lady! You are the boss,

Get up! And come across

© Jalpa lalani ‘Zoya’

© copyright 2020 Jalpa lalani ‘Zoya’

Thank you!

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कल हो न हो

आज बरसों बाद फ़िर से वो दिन आया था, 

मेरी दोस्त ने मिलने का आयोजन बनाया था। 

खो गये थे वक़्त के भवँर में दोनों, 

जब मिले भाव-विभोर बन गए दोनों। 

ये एक दिन सिर्फ़ हमारी दोस्ती के नाम, 

पूरे करने है वो सारे अधूरे अरमान। 

फ़िर क्या पता कल हो न हो….. 

आहना के साथ शुरू हुआ सुन्दर दिन हमारा, 

अभी तो साथ बिताना है दिन सारा। 

अभी भी था उसमें वहीं बचपना, 

ज़िद थी उसकी मेरे हाथ का खाना। 

अब जल्दी तैयार हो बाज़ार भी है जाना, 

उसका हमेशा से था हर बात में देरी करना। 

ये लेना है, वो लेना है करते करते पूरा बाज़ार घूम लिया, 

फ़िर भी मैं खुश थी ना जाने फ़िर कब मिले ये खुशफहमिया। 

फ़िर क्या पता कल हो न हो….. 

अब कितनी करनी है ख़रीदारी मुझे भूख लगी है भारी, 

क्या पता था एक दिन यही बातें, यादें बनेगी सुनहरी। 

अभी तो कितने ईरादे है, है कितनी ख्वाहिशें, 

आज पूरी करनी है मेरी दोस्त की हर फ़रमाइशें। 

पहली बार सिनेमा देखने गये साथ, 

इतने सालों बाद आज पूरी हुई हसरत। 

फ़िर क्या पता कल हो ना हो….. 

वो साम भी कितनी हसीन थी 

दोस्त के साथ समुद्र की लहरे थी

फ़िर से बच्चे बन गये थे फ़िर से रेत में घर बनाये थे 

फ़िर से कागज़ की कश्ती बहाई थी। 

उफ्फ़! ये रात को भी इतनी जल्दि आना था, 

दोनों को अपने अपने घर वापस भी तो जाना था। 

नहीं भूल पाएंगे वो पल, वो एक दिन को, 

साथ ख़ूब हँसे दोनों, भेट कर रो भी लिए दोनों। 

फ़िर क्या पता कल हो न हो….. 

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Note: यह रचना प्रकाशित हो चुकी है और कॉपीराइट के अंतर्गत आती है।

शुक्रिया।

Posted in हिन्दी कविता, blog

ख़ुद से प्यार

हाँ! मैं ख़ुद से प्यार करती हूँ…

बड़ी मुश्किलों के बाद

अपने आपसे यह इज़हार करती हूँ

हाँ! मैं ख़ुद से प्यार करती हूँ। 

ज़िंदगी ने दिए हैं ज़ख़्म  कई 

तभी अपने आपसे प्यार करती हूँ  

छोड़ दिया हैं तन्हा सभी ने 

अब तन्हाईयो में ख़ुद से बात करती हूँ…

हाँ! मैं ख़ुद से प्यार करती हूँ।

ख़ुदग़र्ज़ लगूँगी मैं आपको 

पर ख़ुदग़र्ज़ ना कहना मुझे 

बड़ी मुश्किलों के बाद…

हिम्मत जुटाई है मैंने,

यूँ तो आसान होगा 

किसी और से इज़हार करना 

कभी अपने दिल से 

ख़ुद इज़हार करके तो देख 

कितना प्यार आता है ख़ुद पे 

ज़रा एक बार करके तो देख 

यही तन्हाईयो में ख़ुद से बार बार कहती हूँ,

आईने में देखकर ख़ुद से मुलाकात करती हूँ…

हाँ! मैं ख़ुद से प्यार करती हूँ।

यूँ तो कई से प्यार करके देखा है मैंने 

पर प्यार न मिलने का ग़म हर बार सहा है मैंने 

तो क्यूँ ना अपने आपसे प्यार किया जाए? 

चलो एकबार यह भी करके देख लिया जाए 

ख़ुद से यही ज़िक्र बार बार करती हूँ…

हाँ! मैं ख़ुद से प्यार करती हूँ।

यूँ तो रोते हुए को देखकर 

आँसू आए हैं मेरी आँखों में 

हर रोते हुए को हसाया हैं मैंने 

नवाज़ा है खुदा ने मुझे इस इनायत से 

कहा है मूझसे, सभी को प्यार बाँटते हुए 

कभी अपने आपसे भी प्यार कर ले,

ख़ुदा की यहीं रहमत को 

सजदे के साथ इक़रार करती हूँ… 

हाँ! मैं ख़ुद से प्यार करती हूँ।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Note: यह रचना पब्लिश हो चुकी है। यह रचना कॉपीराइट के अंतर्गत है।

शुक्रिया।