आज की बारिश को महसूस कर के कुछ ज़हन में
आया है जो कागज़ पर उतर आया है।
उफ्फ़ ! क्या ढाया है कुदरत का क़हर
जैसे बह रहा है सड़को पर समंदर।
जिस बारिश से आती है चेहरे पर ख़ुशी
आज वह बारिश क्यों हुई है गमगीन।
दौड़ आते थे बच्चे बारिश में खेलने बाहर
आज वह डर के बैठे हैं घर के भीतर।
दुआ करते थे पहली बारिश होने की
आज दुआ कर रहे हैं उसे रोकने की।
यह गरजता हुआ बादल जैसे रोने की सिसकिया
यह चमकती हुई बिजली जैसे आँखों की झपकियां।
क्या गलती हो गई हम इन्सान से ऐ ख़ुदा
क्यों आज बादल को पड़ रहा है रोना।
अब नही सुनी जाती बादल की यह सिसकिया
साथ मे सुनाई देती हैं किसानों की बरबादियाँ।
संभल जा ऐ इन्सान, है इतनी सी गुज़ारिश
सर झुका दे कुदरत के आगे तभी रुकेगी यह बारिश।
© Jalpa lalani ‘Zoya’
शुक्रिया।
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