आज बरसों बाद फ़िर से वो दिन आया था,
मेरी दोस्त ने मिलने का आयोजन बनाया था।
खो गये थे वक़्त के भवँर में दोनों,
जब मिले भाव-विभोर बन गए दोनों।
ये एक दिन सिर्फ़ हमारी दोस्ती के नाम,
पूरे करने है वो सारे अधूरे अरमान।
फ़िर क्या पता कल हो न हो…..
आहना के साथ शुरू हुआ सुन्दर दिन हमारा,
अभी तो साथ बिताना है दिन सारा।
अभी भी था उसमें वहीं बचपना,
ज़िद थी उसकी मेरे हाथ का खाना।
अब जल्दी तैयार हो बाज़ार भी है जाना,
उसका हमेशा से था हर बात में देरी करना।
ये लेना है, वो लेना है करते करते पूरा बाज़ार घूम लिया,
फ़िर भी मैं खुश थी ना जाने फ़िर कब मिले ये खुशफहमिया।
फ़िर क्या पता कल हो न हो…..
अब कितनी करनी है ख़रीदारी मुझे भूख लगी है भारी,
क्या पता था एक दिन यही बातें, यादें बनेगी सुनहरी।
अभी तो कितने ईरादे है, है कितनी ख्वाहिशें,
आज पूरी करनी है मेरी दोस्त की हर फ़रमाइशें।
पहली बार सिनेमा देखने गये साथ,
इतने सालों बाद आज पूरी हुई हसरत।
फ़िर क्या पता कल हो ना हो…..
वो साम भी कितनी हसीन थी
दोस्त के साथ समुद्र की लहरे थी
फ़िर से बच्चे बन गये थे फ़िर से रेत में घर बनाये थे
फ़िर से कागज़ की कश्ती बहाई थी।
उफ्फ़! ये रात को भी इतनी जल्दि आना था,
दोनों को अपने अपने घर वापस भी तो जाना था।
नहीं भूल पाएंगे वो पल, वो एक दिन को,
साथ ख़ूब हँसे दोनों, भेट कर रो भी लिए दोनों।
फ़िर क्या पता कल हो न हो…..
© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)
Note: यह रचना प्रकाशित हो चुकी है और कॉपीराइट के अंतर्गत आती है।
शुक्रिया।
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