ख़ुदा की बंदगी करके पाले नूर-ए-इबादत
शब-ओ-सहर कर तू सलीक़े से तिलावत
सजदा करके बदल लें अपनी किस्मत बंदे
आख़िरत में साथ देती इबादत की ताक़त।
ईद-ए-मिलाद-उन-नबी मुबारक।🌙🌠
© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)
शुक्रिया
ख़ुदा की बंदगी करके पाले नूर-ए-इबादत
शब-ओ-सहर कर तू सलीक़े से तिलावत
सजदा करके बदल लें अपनी किस्मत बंदे
आख़िरत में साथ देती इबादत की ताक़त।
ईद-ए-मिलाद-उन-नबी मुबारक।🌙🌠
© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)
शुक्रिया
सादर नमन पाठकों।🙏
आज दशहरा के पावन पर्व पर प्रस्तुत है मेरे द्वारा रचित दोहे।
आप सभी को दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
इह बसत हैं सब रावण, ना खोजो इह राम।
पाप करत निस बित जाए, प्रात भजत प्रभु नाम।।
अंतर्मन बैठा रावण, दुष्ट का करो नाश।
हिय में नम्रता जो धरे, राम करत उहाँ वास।।
कोप, लोभ, दंभ, आलस, त्यजो सब यह काम।
रखो मुक्ति की आस, नित भजो राम नाम।।
पाप का सुख मिलत क्षणिक, अंत में खाए मात।
अघ-अनघ के युद्ध में, पुण्य विजय हो जात।।
© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)
धन्यवाद।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब माँ ने कहा तेरे क़दम पड़ते ही
नये घर रूपी मिला हमें एक फल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब हर वक़्त पीछे घुमा करती थी
पकड़े माँ का आँचल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब माँ के साथ जाती थी
नदी किनारे लेने जल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब बापू की फटकार से मिलता था
गणित का हर हल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब बापू रेहते थे हर नियम में अटल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब बापू के घर पर न होने पे
किया करते थे उनकी नक़ल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब बहन के साथ छत से निहारती थी बादल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब सर्दी की रातों में ओढ़ लेती
थी बहन का कम्बल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब बहन के साथ झूम उठती थी
मैं भी पहने पायल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब भाई के पीछे-पीछे चल
पड़ती थी मैं भी पैदल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब भाई के साथ
मचाती थी उथल-पुथल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब बाहर चली जाती थी
पहनकर भाई की उल्टी चप्पल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब साथ बैठकर खाते थे दाल-चावल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब साथ बैठकर देखते थे दूरदर्शन
जैसे सज़ा हो एक मंडल।
याद है मुझे आज भी वो पल
प्यार भरी नींव से बनता है
मेरा परिवार मुक्कमल।
हाँ! याद है मुझे आज भी यह सारे पल
© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)
Note: यह रचना पब्लिश हो चुकी है। यह रचना कॉपीराइट के अंतर्गत है।
धन्यवाद।
एक माली ने बोया है एक बीज मिट्टी में
एक तरफ़ एक बीज पनप रहा है माँ की गोद में।
दिन-रात की मेहनत से बीज डाली बन जाता है
माँ की कोख़ में पोषित होकर वह बीज भी बच्चे का स्वरूप लेता है।
एक दिन सूरज की किरणों से डाली पर कली निकल आती है
एक प्यार की निशानी पिता की परछाई से एक बच्ची जन्म लेती है।
कली खिलते ही पहली बार रंग-बिरंगी दुनिया देखती है
नन्ही सी बच्ची मुस्काते हुए माँ की गोद में खिलखिलाती है।
खुश्बू कली की फैल कर पूरी बगिया महकाती हैं
मंद-मंद किलकारियों से घर की दीवारें गूंज आती हैं।
देखते ही देखते एक दिन कली फूल बन जाती है
नन्ही सी बच्ची खेलकुद कर पढ़-लिख कर एक दिन शबाब कहलाती है।
फूल की सुंदरता को देख सब उसकी और खिंचे चले आते हैं
यौवन की खूबसूरती देख हर कोई आकर्षित हो जाते हैं।
मानव फूल को तोड़कर, कोमल पंखुड़िया मसल कर फेंक देता है
घर की प्यारी को उठाकर, सौंदर्य को अभिशाप में बदल देता है।
फूलों को बगिया में रहने दे उसकी जगह ईश्वर के चरणों में हैं
है मानव, गर लक्ष्मी इतनी प्यारी है तो हर नारी की जगह मंदिर में हैं।
© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)
Note: यह रचना पब्लिश हो चुकी है। यह रचना कॉपीराइट के अंतर्गत है।
शुक्रिया।
हाँ! मैं ख़ुद से प्यार करती हूं…. बड़ी मुस्किलो लो के बाद अपने आपसे यह इज़हार करती हूं हाँ! मैं ख़ुद से प्यार करती हूं। ज़िंदगी ने दिए हैं ज़ख़्म कई तभी अपने आपसे प्यार करती हूं छोड़ दिया हैं तन्हा सभी ने अब तन्हाईयो में ख़ुद से बात करती हूं…. हाँ! मैं ख़ुद से […]
ख़ुद से प्यार
कलयुग के इस संसार में पल-पल इंसान रूप बदलते हैं
समंदर रूपी जीवन में पल-पल हालात रुख़ बदलते हैं
स्वार्थ के बने आशियाने में पल-पल बदलते रिश्ते हैं
हीरे भी तभी चमकते हैं जब बार-बार उसे घिसते हैं
आधुनिकता के बाजार में पल-पल ख़रीददार बदलते हैं
कहानी में भी तभी मोड़ आता है जब किरदार बदलते हैं
वक़्त कहाँ रुकता है पल-पल करके साल भी बदलते हैं
ठहरा कौन है यहाँ चलने वाले हर चाल भी बदलते हैं
© Jalpa lalani ‘Zoya’
शुक्रिया।
क्या श्रद्धांजलि दूँ उनको क्या लिखूं उनके बारे में
ख़ुद दो हाथ से लिखते थे क्या मैं लिखूं उनके बारे में
सत्य, अहिंसा, प्रेम, धर्म, जैसे लगाते थे नारे
जिसके आगे तोप, बारूद, और गोरे भी हारे
बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो
सीख सीखाते बापू के तीन बंदर
आज अन्याय देखकर अँधे बन बैठे हैं सब लोग
मदद के लिए पुकारती आवाज़ को अनसुना करते हैं लोग
बात बात पर अशिष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं लोग
क्या यही सीख ली इन बंदर से?
पूरा जीवन बिता दिया हमें आज़ाद करने में
आज वही आज़ादी का फ़ायदा उठा रहे हैं लोग
मिटाया उन्होंने ऊँच-नीच के भेदभाव को
बढ़ाया हमने ग़रीब-तवंगर के भेदभाव को
स्वदेशी उत्पादन को अपनाया ख़ुद चरखा चलाकर
भारतीय उद्योग को क्या उपहार देंगे हम विदेशी अपनाकर!
साफ रखें सब घर, गली, आँगन, उद्यान
सच में यही है स्वच्छ भारत अभियान
नहीं हराया जाता है किसी को हिंसा से
जीता जा सकता है किसी को अहिंसा से
आज़ादी के लिए कई बार गए है जेल किया है आमरण अनसन
आज एक दिन के व्रत पे भी नहीं कर पा रहे हैं अनसन!
तो आओ अपनाएं गांधी के विचारों को आज
शायद यही दी जाए उनको श्रद्धांजलि आज।
© Jalpa lalani ‘Zoya’
शुक्रिया