किसी ने कहा था मुझे तुम हो चाँद सा नूर
तुम्हारी खूबसूरती से मचल जाता है दिल मेरा
जैसे चाँद की रोशनी दूर करती है अंधेरा
शायद वह मोह था रूप का तभी चले गए दूर।
अब वही चाँद से किया करते है हम गुफ़्तगू
पूछते है उससे कई सवाल
मैं भी तो काला हूँ, मुझे रोशनी देता है रवि
यह कहकर समझाता है मुझे चाँद।
तू मत हो हताश तेरे हुश्न पर
कोई नहीं समझ पायेगा तेरा दिल
तू कर गुमान अपने दिल की सुंदरता पर
जब भी हो मन तेरा उदास तू मुझसे आके मिल।
मेरी भी पूरी नही होती आशा
कभी मैं भी आसमान में नही होता
कभी आता हूँ पूरा तो कभी आधा
चाँद की यही बातो से हो गई मैं फ़िदा।
सह लिया सब से हमने धोखा
आज करते हैं हम इक़रार
अब कर लिया है चाँद से हमने प्यार
क्योंकि चाँद बेवफ़ा नही होता।
© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)
Note: यह रचना प्रकाशित हो चुकी है और कॉपीराइट के अंतर्गत आती है।
शुक्रिया।