याद है मुझे आज भी वो पल
जब माँ ने कहा तेरे क़दम पड़ते ही
नये घर रूपी मिला हमें एक फल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब हर वक़्त पीछे घुमा करती थी
पकड़े माँ का आँचल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब माँ के साथ जाती थी
नदी किनारे लेने जल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब बापू की फटकार से मिलता था
गणित का हर हल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब बापू रेहते थे हर नियम में अटल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब बापू के घर पर न होने पे
किया करते थे उनकी नक़ल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब बहन के साथ छत से निहारती थी बादल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब सर्दी की रातों में ओढ़ लेती
थी बहन का कम्बल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब बहन के साथ झूम उठती थी
मैं भी पहने पायल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब भाई के पीछे-पीछे चल
पड़ती थी मैं भी पैदल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब भाई के साथ
मचाती थी उथल-पुथल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब बाहर चली जाती थी
पहनकर भाई की उल्टी चप्पल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब साथ बैठकर खाते थे दाल-चावल।
याद है मुझे आज भी वो पल
जब साथ बैठकर देखते थे दूरदर्शन
जैसे सज़ा हो एक मंडल।
याद है मुझे आज भी वो पल
प्यार भरी नींव से बनता है
मेरा परिवार मुक्कमल।
हाँ! याद है मुझे आज भी यह सारे पल
© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)
Note: यह रचना पब्लिश हो चुकी है। यह रचना कॉपीराइट के अंतर्गत है।
धन्यवाद।
Wah kya baat kahi hai 😊
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जी बहुत धन्यवाद😊
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My pleasure 😊
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Beautifully written !
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Thanks a lot Era💖
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😊😊
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Bahoot khoob !
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जी बहुत शुक्रिया😊
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बेहद उम्दा पंक्तियाँ💕✨😊
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जी बहुत आभार आपका😊
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Waah
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जी धन्यवाद आपका😊
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WoW! So beautifully written and expressed, lovely emotional read!📝👌👌
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Thank you so much!💖
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Very very nice!!
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Thank you so much😊
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बेहद खूबसूरती से सँजोए हैं आपने वो पल ।💝👍
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जी गहराई को महसूस करने के लिए तहे दिल से धन्यवाद🙂🤗
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👍
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खूबसूरत रचना 👌
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धन्यवाद😊
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