मुझे याद आती बचपन की वो होली
एक साथ निकलती हम बच्चों की टोली
रंग, गुलाल, पानी के गुब्बारे, और पिचकारी
कर लेते थे अगले दिन सब मिलके तैयारी
रंग-बेरंगी कपड़े हो जाते
जैसे इन्द्रधनुष उतर आया धरती पे
रंग जाते थे संग में सब के बाल
ज़ोरो ज़ोरो से रगड़ के लगाते गुलाल
बाहर निकलते ही सब को डराते
किसीके घर के दरवाज़े भी रंग आते
सामने देखते बड़े लड़को की गैंग
सब को चिड़ाते वो सब पी के भांग
वो सब के साथ मिलके गाते गाने
वो चिल्लाते जाते… होली है…!
© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)
धन्यवाद।