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रातें बीत जाती हैं

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222 1222 1222 1222

यूँ तन्हाई में अक्सर मेरी, रातें बीत जाती हैं,

बिना मेरे कैसे उन्हें, सुकूँ से नींद आती है!

जमीं पे दो सितारों के, मिलन से है फ़लक रौशन,

हो गर सच्ची मुहब्बत फ़िर, ये काएनात मिलाती है।

नहीं बनना ज़रूरत वक़्त के साथ जो बदल जाए,

मुझे आदत बना लो, उम्र भर जो साथ निभाती है।

मिरे दिल के सफ़े पे नाम, तेरा लिक्खे रखती हूँ,

उसे आँखों से छलके अश्क़ की बूंदे मिटाती हैं।

यूँ हर मिसरे में उल्फ़त, घोल देती है क़लम मेरी,

ग़ज़ल पढ़कर ये ना कहना, कि ‘ज़ोया’ तो जज़्बाती है।

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

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जीने की हसरत है

1222 1222 1222 1222

नहीं सीने में दिल फ़िर भी मुझे जीने की हसरत है,

अजब है ये हुई भी चोर-ए-दिल से ही यूँ चाहत है।

यूँ आँखें मूंद कर सब पर यकीं कर लेती हूँ अक्सर,

मिले धोखा तो कह देती यही तो मेरी किस्मत है।

हूँ बर्दाश्त के क़ाबिल, मुश्किलें यूँ मुझ पे आती हैं,

यक़ीनन हूँ नज़र में मौला की ये उसकी रहमत है।

ये ना समझो कि कोई ग़म नहीं होता है मुझ को भी,

छुपाना दर्द को अब बन गई मेरी भी आदत है।

अदा ‘ज़ोया’ न कर पाओ नमाज़, करना मदद सबकी 

समझ लेना ख़ुदा की कर ली तूने वो इबादत है।

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

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जज़्बात लिखती हूँ

1222 1222 1222 1222

फ़क़त अल्फ़ाज़ ना ये समझो, मैं जज़्बात लिखती हूँ,

लबों पे है दबी जो मैं, वो दिल की बात लिखती हूँ।

बेशक़ वाकिफ़ हूँ मैं भी, तल्ख़ी-ए-हालात से तेरे,

कभी ना होगी तुझसे मैं, वो ही मुलाक़ात लिखती हूँ।

ख़याल-ए-ग़म-ए-मोहब्बत में कट जाता है दिन मेरा,

गुज़र जाती बिना तेरे, वो तन्हा रात लिखती हूँ।

तिरी इस बेरुखी से अब ये मेरा दिल सुलगता है,

गिरे जो आँखों से वो अश्क़ की बरसात लिखती हूँ।

कि दिल में दर्द होठों पे तबस्सुम रखती है ‘ज़ोया’,

लहू की स्याही से मैं दर्द की आयात लिखती हूँ।

[ तल्ख़ी-ए-हालात=bitterness of situation / तबस्सुम=smile ]

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

(स्वरचित / सर्वाधिकार सुरक्षित)

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गुलाबी यादें

1222 1222 1222

तुम्हारी यूँ गुलाबी यादें आती है,

मिरे दिल को सुकूँ थोड़ा दे जाती है।

गुज़र जाता है यादों के सहारे दिन,

जुदाई तेरी, रातों में सताती है।

तसव्वुर में शुआओं सी तिरी सूरत,

मुझे अब भी ये सोते से जगाती है।

कि करती है मुहब्बत वो हमें इतनी,

न जाने फ़िर जहाँ से क्यों छुपाती है।

यूँ ख़्वाबों में मिरे आकर कभी वो तो,

हँसाती है, कभी वो ही रुलाती है।

ये कैसा रिश्ता है, ये राब्ता कैसा,

बुलाती पास है फ़िर दूर जाती है।

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

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मिठास इश्क़ की

1212 1212 1212

अधूरी रहती इन लबों की प्यास है
है पहनी गर्म बाहों की लिबास है
बदन में घुलती चाशनी-ए-इश्क़ जो
बड़ी लजीज़ इश्क़ की मिठास है।

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

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मुहब्बत की क़ैद

1222 1222 1222 1222

ये कैद-ए-इश्क़ से ‘जाना’ तुझे आज़ाद करते है,

मुकम्मल आज तेरी और इक मुराद करते है।

भुला देना मुझे बेशक़ जो चाहो भूलना पर हम,

कहेंगे ना कभी तुम्हें कि कितना याद करते है।

खता कर बैठते है हम मुहब्बत में तिरी यूँ ही,

कि अक्सर उस ख़ुदा का ज़िक्र तेरे बाद करते है।

किया महबूब का सजदा मैंने, की है इबादत भी,

वो ठुकरा के मिरा ये इश्क़ कहीं ईजाद करते है।

कि वो बरबाद करके ज़ोया को, मासूम बन बैठे

दिखाने को किसी की ज़िन्दगी आबाद करते है।

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

स्वरचित , सर्वाधिकार सुरक्षित

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कुछ क़समें झूठी सी

इज़हार-ए-इश्क़ में कुछ क़समें झूठी सी उसने खाई थी,

यक़ीन नहीं आता, क्या मोहब्बत भी झूठी  दिखाई थी?

सरेआम नीलाम कर दिए उसने मेरे हर एक ख़्वाब को,

जिसने मेरे दिन का चैन औ मेरी रातों की नींद चुराई थी।

जिसे  समझ बैठी थी मैं  आग़ाज़-ए-मोहब्बत  हमारी,

दरअसल  वो तो  मिरे  दर्द-ए-दिल  की इब्तिदाई  थी।

यूँ तो  नज़रअंदाज़  कर गई मैं  उसकी सारी गलतियां,

मगर क्या अच्छाई के पीछे भी छुपी उसकी बुराई थी!

अब  कैसा  गिला  और  क्या  शिकायत  करूँ उससे!

जब  दोनों  के  मुक़द्दर में  ही  लिखी  गई  जुदाई  थी।

उसकी इतनी  बे-हयाई और बेवफ़ाई  के  बावज़ूद भी,

माफ़  कर  दिया  उसे,  ये  तो  ‘ज़ोया’  की  भलाई थी।

[इब्तिदाई=शुरुआत]

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित

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दिल का गुलाब

1122  1212  1121

जो बरसता है तेरे इश्क़ का आब,

तो है खिल उठता मेरे दिल का गुलाब।

कि मुनव्वर करे अँधेरी ये रात ,

तिरी सूरत का परतव-ए-माहताब।

तिरी क़ुर्बत में कुछ अजब सा नशा है,

ख़ुशी से झूमा हूँ बिना ही शराब।

कहीं लग जाए ना नज़र तुझे सबकी,

कि ज़रा रुख़ पे पहनो तुम भी हिजाब।

यूँ जमाल-ए-सनम की आँखों के आगे,

फ़िके पड़ते सितारे ओ आफ़ताब।

तिरा ‘ज़ोया’ दिवाना कौन नहीं है!

मिला है ये शरीफ़ को भी  ख़िताब।

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित

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कतल इश्क़ का

1222  1222  122
कि दर्द-ए-दिल ये दिलबर ने दिया है,
कतल ये इश्क़ का उसने किया है।

मुहब्बत में सनम ने करके धोखा,
बदल ज़ालिम ने ख़ुद को ही लिया है।

जो मेरी रूह पर खंजर चला तो,
वो हर अश्क़-ए-लहू मैंने पिया है।

मेरी हर साँस में है साँसें उसकी,
न इक लम्हा भी उसके बिन जिया है।

नहीं मांगा था हमने तो कभी भी, 
ये ग़म का तोहफ़ा फ़िर क्यों दिया है!

Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’

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मैं लब हूँ वो अल्फ़ाज़ है

2212  2212


मैं लब हूँ वो अल्फ़ाज़ है,
मैं नज़्म, वो जज़्बात है।

दिल की ज़मीं सूखी मेरी,
वो अब्र, वो बरसात है।

हर वक़्त, हर पल पास है,
वो दिन, वो मेरी रात है।

फ़िक्र-ए-सुख़न में मेरी वो,
तहरीर का एहसास है।

क़ुरआन का वो हर सफ़ा,
वो सूरा वो आयात है।

वो ज़ीस्त-ए-ज़ोया की हर,
खुशियों की वो सौग़ात है।

Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

शुक्रिया😊

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अब दिल नहीं भरता है

1222  1222  1222  1222

तिरी ये इश्क़ की बारिश से, अब ये दिल ना भरता है,

कि महफ़िल-ए-मुहब्बत में, ये मन ग़मगीन रहता है।

तसव्वुर से मिटा दी है यूँ हर इक याद को तेरी,

कि जितना भूलना चाहूँ तू उतना याद आता है।

मुझे ये है ख़बर जिंदा है अब तक तू सनम मेरे,

कि जब तू साँस लेता है ये मेरा दिल धड़कता है।

नहीं मिटते निशां तेरे क़दम के जब मैं चलती हूँ,

कि अब भी साथ में मेरे तिरा ही अक्स दिखता है।

न समझेगा कभी भी वो तेरे जज़्बात को ‘ज़ोया’,

तुझे वो छोड़ किसी ग़ैर की बाहों में सोता है।

Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

शुक्रिया😊

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सोचा न था

2212   2212   2212   2212 बह्र में ग़ज़ल


तेरी जुदाई में जी पाएंगे कभी सोचा न था,
वो था फ़रेब-ए-इश्क़ तेरा, वो भी तो सच्चा न था।

एतबार के धागे से बंधा राब्ता था अपना जो,
यूँ टूटा इतना भी हमारा रिश्ता ये कच्चा न था।

ख़्वाहिश थी तुझको इक दफ़ा देखूँ पलटकर भी मगर,
मुझको यूँ ही जाते हुए तूने कभी रोका न था।

तुझ से बिछड़के क्या ग़म-ओ-अफसोस करना ऐ सनम,
खोने का भी क्या रंज हो जिसको कभी पाया न था।

सह भी लिए ज़ोया ने सब ज़ुल्म-ओ-सितम भी इसलिए,
खोया था अपनों को, तुझे भी अब उसे खोना न था।

स्वरचित (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’

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तुम हो

दोस्तों बह्र में मेरी पहली ग़ज़ल पेश-ए-ख़िदमत है।

बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222 1222 1222

मिरी हर बात में, हर लफ़्ज़ में तुम हो,
जुदा ना मुझसे, मेरे अक्स में तुम हो।

तिरी ख़ुश्बू से मेरी, साँसें है चलती,
मिरे दिल तक हैं जो,हर नब्ज़ में तुम हो।

तू ही रब, तू दुआ भी हो सनम मेरे,
यूँ शामिल ऐसे, मेरी नफ़्स में तुम हो।

तू है उनवान तू ही इख़्तिताम भी है,
किताब-ए-ज़िन्दगी के हर्फ़ में तुम हो।

शुरू तुझ से, ख़तम तुझ पे मिरी तहरीर,
यूँ ‘ज़ोया’ की ग़ज़ल, हर नज़्म में तुम हो।

स्वरचित (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’

उर्दू शब्दों के अर्थ:- [ इख़्तिताम=समापन, ending/ तहरीर=लेखनी/ नब्ज़=रग/ नफ़्स=आत्मा,रूह/ उनवान=शीर्षक]

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कुछ क़समें झूठी सी

इज़हार-ए-इश्क़ में कुछ क़समें झूठी सी उसने खाई थी,
यक़ीन नहीं आता, क्या मोहब्बत भी झूठी दिखाई थी?

सरेआम नीलाम कर दिए उसने मेरे हर एक ख़्वाब को,
जिसने मेरे दिन का चैन औ मेरी रातों की नींद चुराई थी।

जिसे समझ बैठी थी मैं आग़ाज़-ए-मोहब्बत हमारी,
दरअसल वो तो मिरे दर्द-ए-दिल की इब्तिदाई थी।

यूँ तो नज़रअंदाज़ कर गई मैं उसकी सारी गलतियां,
मगर क्या अच्छाई के पीछे भी छुपी उसकी बुराई थी!

अब कैसा गिला और क्या शिकायत करूँ उस से!
जब दोनों के मुक़द्दर में ही लिखी गई जुदाई थी।

उसकी इतनी बे-हयाई और बेवफ़ाई के बावज़ूद भी,
माफ़ कर दिया उसे, ये तो ‘ज़ोया’ की भलाई थी।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

शुक्रिया🙂

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आग़ाज़-ए-शायरी

मेरी ज़िंदगी में तुम हो तो सब है
तुझसे शुरू मेरी सहर औ शब है
सजदा-ए-इश्क़ में सर झुका दूँ
कि मेरे लिए तो तू ही मेरा रब है।

★★★★★★★★★★★★★★★

है एक छोटी सी आशा, ऊँचे आसमाँ में उड़ना है स्वछंद,
है यही एक अभिलाषा, कोई कतरे ना मेरे ख़्वाबों के पंख।

★★★★★★★★★★★★★★★

कदम से कदम मिला के प्रेम डगर पर चलना है
हाथों में हाथ डाल के इसे कभी ना छोड़ना है
सफ़र-ए-मोहब्बत में बिछे हो चाहे लाखों शूल
आए कितनी भी रुकावटे मंज़िल को हमें पाना है।

★★★★★★★★★★★★★★★

इस जहाँ की नज़रों में बेनाम सा हमारा रिश्ता है,
है ये तड़प कैसी! कैसा रूह  के बीच वाबस्ता है!
हसरतें दम तोड़ रही हैं अब आहिस्ता आहिस्ता,
अवाम की फ़िक्र नहीं, तुझ से ही  मेरा वास्ता है।

★★★★★★★★★★★★★★★

हिज्र-ए-यार में दिन काट लिए उसकी यादों के सहारे,
आरज़ू-ए-विसाल-ए-यार में हर रात ख़्वाबों में गुजारे।

★★★★★★★★★★★★★★★

उर्दू शब्दों के अर्थ:- शब = रात / वाबस्ता = संबंध / हिज़्र-ए-यार = यार की जुदाई / आरज़ू-ए-विसाल-ए-यार = यार से मिलन की उम्मीद

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित / सर्वाधिकार सुरक्षित)

शुक्रिया

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तारीफ़-ए-हुस्न

सुनहरी लहराती ये ज़ुल्फ़ें तिरी और ये शबाब,
कोमल नाज़ुक बदन तिरा जैसे महकता गुलाब।

बैठ गया तू सामने तो साक़ी की क्या ज़रूरत,
सुर्ख़ थरथराते ये लब तिरे जैसे अंगूरी शराब।

सहर में जब तू लेता अंगड़ाई ओ मिरे सनम,
तुझे चूमने फ़लक से उतर आता है आफ़ताब।

रौशन कर दे अमावस की काली अँधेरी रात भी,
मिरा हसीं माशूक़ जब रुख़ से उठाता है हिजाब।

तारीफ़-ए-हुस्न लिखने को बेताब है मेरी कलम,
ग़ज़ल क्या! ‘ज़ोया’ तुझ पे लिख दूँ पूरी किताब।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

शुक्रिया

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कुछ शाम

तेरी ज़ुल्फ़ तले राहत देती हैं कुछ शाम,
तन्हाई में प्यास बुझाते तेरे यादों के जाम।

तेरी झुकी आँखों से फैला गहरा काजल,
लिख देता है मेरे दिल पर इश्क़ का पैगाम।

अंदाज़-ए-गुफ़्तगू तेरा दिल पर करता वार,
जब तूम भेजती हो यूँ इशारों से सलाम।

छूती है जब तेरे मीठे लबों से चाय,
दूर कर देती है मेरी दिन भर की थकान।

शाम-ओ-सहर दिल के कोरे काग़ज़ पर,
लिखता हूँ बस तेरा ही इक नाम।

चला दे गर मेरे दिल पर तू हुकूमत,
ये नाचीज़ बन जाए ताउम्र तेरा ग़ुलाम।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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शुक्रिया

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चल दूर कहीं

चल इस दुनिया से दूर कहीं हम दोनों चले जाते हैं,
नदी से मोहब्बत और फल से मीठा रस लाते हैं।

आसमाँ को चादर और जमीं को बिछौना बनाते हैं,
सूरज की रोशनी और ठंडी हवा से सुकून पाते हैं।

फूलों से खुशबू और चाँद से चाँदनी चुरा लाते हैं,
चलो उस जन्नत में जाकर आशियाना बनाते हैं।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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शुक्रिया

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मरीज-ए-इश्क़

आजकल  कुछ अजीब  सा  मर्ज़ हुआ है,
मर्ज़ क्या, जैसे चुकाना कोई कर्ज़ हुआ है।

जाना हुआ मोहब्बत की दार-उल-शिफ़ा में,
बोला हक़ीम तुम्हें तो, दिल का दर्द हुआ है।

मर्ज़-ए-इश्क़  की  महंगी  पड़ी  है  तदबीर,
वस्ल-ए-यार  का इलाज  जो अर्ज़  हुआ है।

रूठा  है बीमारदार  इस मरीज-ए-इश्क़ का,
रूह-ए-जिस्म के पर्चे पर नाम दर्ज हुआ है।

ये साँसे  तो  चलती  है सनम  की खुशबू से,
क्या करें! मिरा महबूब  ही खुदगर्ज हुआ है।

परवा-ए-उम्मीद-ओ-बीम   न   कर   ‘ज़ोया’
इश्क़-ए-तबाही  में अक्सर ही  हर्ज हुआ है।

उर्दू शब्दों में अर्थ: मर्ज़=बीमारी/ दार-उल-शिफ़ा=अस्पताल/ तदबीर=उपाय/ वस्ल=मुलाक़ात/ बीमारदार=परिचारक /परवा-ए-उम्मीद-ओ-बीम=आशा की परवाह/ हर्ज=नुकशान

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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शुक्रिया।

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आगाज़-ए-शायरी (शेर-ओ-शायरी)

ख़ुदा के इशारों को समझ, हैं सही रब के फ़ैसले
मुश्किलात में वही देता है, तुम्हें सब्र और हौसले
इबादत, सख़ावत करके, कुछ नेकियां करले बंदे
सजदे में सर झुकाकर, गुनाहों से तौबा तू कर ले।

★★★★★★★★★★★★★★★★★

मुझे छोड़कर, बना दे तू अजनबी, अगर मुझसे नफ़रत है,
दूर मुझसे होकर, बढ़ती तेरी बेताबी, क्या ये तेरी उल्फ़त है!

★★★★★★★★★★★★★★★★★

बुझती नहीं मन की प्यास, नहीं होती तेरे इश्क़ की बरसात,
ढलती शब में करते उजास, तेरे साथ बिताए हरेक लम्हात।

★★★★★★★★★★★★★★★★★

बहुत कुछ बदलता हैं वक़्त के साथ
बदलते रहते हैं हालात और ख़्यालात
इतने आहत हो जाते हैं बाज़ औक़ात
कि ता-उम्र सुलगते रहते हैं जज़्बात
जो बुझा पाए इस दिल की आग
नहीं होती कभी वो इश्क़ की बरसात।

★★★★★★★★★★★★★★★★★

यूँ तो मेरा दिल बेशक़ तेरे दिए ज़ख्मों से मज़लूम है,
दिल चीर के देखना अब भी तेरी जगह मुस्तहकम है।

★★★★★★★★★★★★★★★★★

उर्दू शब्दों के अर्थ: सख़ावत=दान / तौबा=माफ़ी / उल्फ़त=प्यार / शब=रात / लम्हात=वक़्त / बाज़-औक़ात= कभी कभी / मज़लूम=आहत / मुस्तहकम=अटल

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

शुक्रिया

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आगाज़-ए-शायरी (शेर-ओ-शायरी)

एहसास-ए-मोहब्बत जन्नत का सुकून देता है
हाँ ! आईने में महबूब का अक्स ज़ुनून देता है
जो तोड़ जाए दिल अक्सर वही रहता है याद
मरहम जो लगाता है ज़ख़्म भी यक़ीनन देता है।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★

जज़्बात की चाशनी में एतबार का मावा मिल जाए
परवाह की खुशबू के साथ थोड़ा एहतराम घुल जाए
रंग और मेवा डालकर बढ़ जाती है मिठास इश्क़ की
बड़ी ही लज़ीज फिर मोहब्बत की मिठाई बन जाए।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★

ज़िंदगी के उस  मोड़ पर अकेली मैं खड़ी थी
हौसले के औज़ार से मौत की जंग लड़ी थी
कुछ अजीब सी रोशनी को मैंने पास पाया था
बंदगी में ख़ुदा से जुड़ी मेरी रूह की कड़ी थी।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★

ज़मीन-ए-दिल में दफ़न हैं अनसुनी शिकायतें
ग़म-ए-धूप से सूख गई हैं सारी अधूरी हसरतें
मुसलसल चल रही जहरीली मुसीबत की हवा 
लगता है ख़ुदा भी नहीं सुन रहा है मेरी मिन्नतें।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★

क़ौस-ए-क़ुज़ह की कलम से
कुछ यादें लिखी हैं फ़लक पे
मुसलसल बरसती हैं बारिश
अक्सर सर-ज़मीन-ए-दिल पे।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★

उर्दू शब्दों के अर्थ: अक्स=परछाई / क़ौस-ए-क़ुज़ह=इंद्रधनुष / मुसलसल=लगातार

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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शुक्रिया

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Watch “#shayri #poem सजा-ए-इश्क़ में ऐसा ज़ख्म खाया मैंने Poem by Jalpa Kalani ‘Zoya’ / POETRY STAGE” on YouTube

Hello, friends

Mujhe aap sab ki madad ki aavshyakta hain. YouTube me jaakar mere is video me likes aur comments karen. Aur jitna ho sake mere video ko share karen.

Thank you in advance.😊🙏

© Jalpa lalani ‘Zoya’

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बहुत कुछ बाकी है

बहुत कुछ बाकी है तेरे मेरे दरमियाँ,
तेरी याद में अभी आँखें भर आती है।

मोहब्बत से ऊँचा नहीं यह आसमाँ,
पर तूने हर दम इसे जमीं से नापी है।

सफ़र-ए-इश्क़ की हुई है शुरुआत,
अभी तो ये सिर्फ़ प्रेम की झांकी है।

बहुत कुछ बाकी है तेरे मेरे दरमियाँ
दूरीमें नज़दीकी का एहसास काफ़ी है।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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सुबह होने वाली है

चाँद की मद्धम रोशनी तले बाहों के बिस्तर में पूरी रात गुजारी है
प्यार भरे लम्स से कोमल कली खिलकर खूबसूरत फूल बन गई है

दो जिस्म के साथ रूह के मिलन की सितारें देने आए गवाही है
दोनों बहक कर इश्क़ में पिघल रहे इस नशे में रात हुई रंगीन है

मिलन की प्यास है अधुरी, सूरज की किरणें धरा को चूमने वाली है
दिल में अजीब सी बेताबी है पर तुम जाओ प्रिये सुबह होने वाली है।