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आग़ाज़-ए-शायरी

मेरी ज़िंदगी में तुम हो तो सब है
तुझसे शुरू मेरी सहर औ शब है
सजदा-ए-इश्क़ में सर झुका दूँ
कि मेरे लिए तो तू ही मेरा रब है।

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है एक छोटी सी आशा, ऊँचे आसमाँ में उड़ना है स्वछंद,
है यही एक अभिलाषा, कोई कतरे ना मेरे ख़्वाबों के पंख।

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कदम से कदम मिला के प्रेम डगर पर चलना है
हाथों में हाथ डाल के इसे कभी ना छोड़ना है
सफ़र-ए-मोहब्बत में बिछे हो चाहे लाखों शूल
आए कितनी भी रुकावटे मंज़िल को हमें पाना है।

★★★★★★★★★★★★★★★

इस जहाँ की नज़रों में बेनाम सा हमारा रिश्ता है,
है ये तड़प कैसी! कैसा रूह  के बीच वाबस्ता है!
हसरतें दम तोड़ रही हैं अब आहिस्ता आहिस्ता,
अवाम की फ़िक्र नहीं, तुझ से ही  मेरा वास्ता है।

★★★★★★★★★★★★★★★

हिज्र-ए-यार में दिन काट लिए उसकी यादों के सहारे,
आरज़ू-ए-विसाल-ए-यार में हर रात ख़्वाबों में गुजारे।

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उर्दू शब्दों के अर्थ:- शब = रात / वाबस्ता = संबंध / हिज़्र-ए-यार = यार की जुदाई / आरज़ू-ए-विसाल-ए-यार = यार से मिलन की उम्मीद

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित / सर्वाधिकार सुरक्षित)

शुक्रिया

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मेरी कविता

‘मेरी कविता’ उनवान पर आज हूँ लिखती मेरी कविता,
सिर्फ अल्फ़ाज़ नहीं, मेरे जज़्बात बयां कर जाती मेरी कविता।

मेरी कविता में लिखा है मैंने ज़िंदगी का तज़ुर्बा,
सिर्फ पंक्तियां नहीं, एहसास महसूस कराती मेरी कविता।

मेरी कविता फ़क़त एक दास्ताँ नहीं, ख़ुलूस-ए-निहाँ हैं,
सिर्फ तसव्वुर नहीं, हरेक मर्ज़ की दवा देती मेरी कविता।

मेरी कविता सिर्फ दुनयावी खूबसूरती नहीं दिखाती,
क़ायनात से मोहब्बत, रहम करना सिखाती मेरी कविता।

सिर्फ लय, छंद, अलंकार नहीं, मेरी कविता बजती तरंग है,
माँ शारदे की आराधना से है आती मेरी कविता।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

Note: यह रचना प्रकाशित हो चुकी है और कॉपीराइट के अंतर्गत आती है।

शुक्रिया।

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“यादगार पल” 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब माँ ने कहा तेरे क़दम पड़ते ही 

नये घर रूपी मिला हमें एक फल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब हर वक़्त पीछे घुमा करती थी 

पकड़े माँ का आँचल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब माँ के साथ जाती थी 

नदी किनारे लेने जल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब बापू की फटकार से मिलता था 

गणित का हर हल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब बापू रेहते थे हर नियम में अटल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब बापू के घर पर न होने पे 

किया करते थे उनकी नक़ल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब बहन के साथ छत से निहारती थी बादल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब सर्दी की रातों में ओढ़ लेती 

थी बहन का कम्बल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब बहन के साथ झूम उठती थी 

मैं भी पहने पायल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब भाई के पीछे-पीछे चल 

पड़ती थी मैं भी पैदल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब भाई के साथ 

मचाती थी उथल-पुथल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब बाहर चली जाती थी 

पहनकर भाई की उल्टी चप्पल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब साथ बैठकर खाते थे दाल-चावल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

जब साथ बैठकर देखते थे दूरदर्शन 

जैसे सज़ा हो एक मंडल। 

याद है मुझे आज भी वो पल 

प्यार भरी नींव से बनता है 

मेरा परिवार मुक्कमल। 

हाँ! याद है मुझे आज भी यह सारे पल 

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Note: यह रचना पब्लिश हो चुकी है। यह रचना कॉपीराइट के अंतर्गत है।

धन्यवाद।

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होली है!

मुझे याद आती बचपन की वो होली

एक साथ निकलती हम बच्चों की टोली

रंग, गुलाल, पानी के गुब्बारे, और पिचकारी

कर लेते थे अगले दिन सब मिलके तैयारी

रंग-बेरंगी कपड़े हो जाते

जैसे इन्द्रधनुष उतर आया धरती पे

रंग जाते थे संग में सब के बाल

ज़ोरो ज़ोरो से रगड़ के लगाते गुलाल

बाहर निकलते ही सब को डराते

किसीके घर के दरवाज़े भी रंग आते

सामने देखते बड़े लड़को की गैंग

सब को चिड़ाते वो सब पी के भांग

वो सब के साथ मिलके गाते गाने

वो चिल्लाते जाते… होली है…!

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

धन्यवाद।

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क्यों?

सहनशीलता पत्नी की ऐसी सीता सी तू
फ़िर दहेज की लालच में तुझे दुत्कारते हैं क्यों?

त्याग प्रेयसी का ऐसी राधा सी तू
फ़िर अपमानित की जाती है हर जगह क्यों?

सुंदरता स्त्री की ऐसी अहल्या सी तू
फ़िर एसिड से तेरी सुंदरता को नष्ट करते हैं क्यों?

पावनता पौधे की ऐसी तुलसी सी तू
फ़िर भ्रूण में तेरी हत्या की जाती हैं क्यों?

कोमलता फूल की ऐसी गुलाब सी तू
फ़िर जिंदा तुझे जलाया जाता हैं क्यों?

पवित्रता नदी की ऐसी गंगा सी तू
फ़िर तेरे चरित्र पर लांछन लगाया जाता हैं क्यों?

रस भक्ति का ऐसी मीरा सी तू
फ़िर लड़ती जब न्याय को तो आवाज़ दबाई जाती हैं क्यों?

पतिव्रता अर्धांगिनी की ऐसी उर्मिला सी तू
फ़िर आज भी सुरक्षित नहीं है नारी, आप ही बताए क्यों?

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Note: यह रचना प्रकाशित हो चुकी है और कॉपीराइट के अंतर्गत आती है।

धन्यवाद।

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कल हो न हो

आज बरसों बाद फ़िर से वो दिन आया था, 

मेरी दोस्त ने मिलने का आयोजन बनाया था। 

खो गये थे वक़्त के भवँर में दोनों, 

जब मिले भाव-विभोर बन गए दोनों। 

ये एक दिन सिर्फ़ हमारी दोस्ती के नाम, 

पूरे करने है वो सारे अधूरे अरमान। 

फ़िर क्या पता कल हो न हो….. 

आहना के साथ शुरू हुआ सुन्दर दिन हमारा, 

अभी तो साथ बिताना है दिन सारा। 

अभी भी था उसमें वहीं बचपना, 

ज़िद थी उसकी मेरे हाथ का खाना। 

अब जल्दी तैयार हो बाज़ार भी है जाना, 

उसका हमेशा से था हर बात में देरी करना। 

ये लेना है, वो लेना है करते करते पूरा बाज़ार घूम लिया, 

फ़िर भी मैं खुश थी ना जाने फ़िर कब मिले ये खुशफहमिया। 

फ़िर क्या पता कल हो न हो….. 

अब कितनी करनी है ख़रीदारी मुझे भूख लगी है भारी, 

क्या पता था एक दिन यही बातें, यादें बनेगी सुनहरी। 

अभी तो कितने ईरादे है, है कितनी ख्वाहिशें, 

आज पूरी करनी है मेरी दोस्त की हर फ़रमाइशें। 

पहली बार सिनेमा देखने गये साथ, 

इतने सालों बाद आज पूरी हुई हसरत। 

फ़िर क्या पता कल हो ना हो….. 

वो साम भी कितनी हसीन थी 

दोस्त के साथ समुद्र की लहरे थी

फ़िर से बच्चे बन गये थे फ़िर से रेत में घर बनाये थे 

फ़िर से कागज़ की कश्ती बहाई थी। 

उफ्फ़! ये रात को भी इतनी जल्दि आना था, 

दोनों को अपने अपने घर वापस भी तो जाना था। 

नहीं भूल पाएंगे वो पल, वो एक दिन को, 

साथ ख़ूब हँसे दोनों, भेट कर रो भी लिए दोनों। 

फ़िर क्या पता कल हो न हो….. 

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Note: यह रचना प्रकाशित हो चुकी है और कॉपीराइट के अंतर्गत आती है।

शुक्रिया।

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चाँद बेवफ़ा नही होता

किसी ने कहा था मुझे तुम हो चाँद सा नूर 

तुम्हारी खूबसूरती से मचल जाता है दिल मेरा 

जैसे चाँद की रोशनी दूर करती है अंधेरा 

शायद वह मोह था रूप का तभी चले गए दूर। 

अब वही चाँद से किया करते है हम गुफ़्तगू 

पूछते है उससे कई सवाल 

मैं भी तो काला हूँ, मुझे रोशनी देता है रवि 

यह कहकर समझाता है मुझे चाँद। 

तू मत हो हताश तेरे हुश्न पर 

कोई नहीं समझ पायेगा तेरा दिल 

तू कर गुमान अपने दिल की सुंदरता पर 

जब भी हो मन तेरा उदास तू मुझसे आके मिल। 

मेरी भी पूरी नही होती आशा 

कभी मैं भी आसमान में नही होता 

कभी आता हूँ पूरा तो कभी आधा

चाँद की यही बातो से हो गई मैं फ़िदा। 

सह लिया सब से हमने धोखा 

आज करते हैं हम इक़रार 

अब कर लिया है चाँद से हमने प्यार 

क्योंकि चाँद बेवफ़ा नही होता। 

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Note: यह रचना प्रकाशित हो चुकी है और कॉपीराइट के अंतर्गत आती है।

शुक्रिया।