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मिठास इश्क़ की

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अधूरी रहती इन लबों की प्यास है
है पहनी गर्म बाहों की लिबास है
बदन में घुलती चाशनी-ए-इश्क़ जो
बड़ी लजीज़ इश्क़ की मिठास है।

Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’

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आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।🇮🇳

Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’

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Google

As we all know that Google is releasing its core update in December. तो इस पर मैंने एक शायरी बनाई है। उम्मीद है आप सबको पसंद आएगी।

गूगल ने अपने मूल नवीनतम करके जीवन और आसान कर दिया है
गूगल ने मानचित्र में संदेश विकल्प जोड़ने का अब एलान कर दिया है
दिल-ओ-दिमाग के अनसुलझे हर एक सवाल का देता है तुरंत जवाब
सब है इसके आधीन, लोगों ने गूगल को आधुनिक भगवान कर दिया है।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

धन्यवाद।

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आगाज़-ए-शायरी (शेर-ओ-शायरी)

ख़ुदा के इशारों को समझ, हैं सही रब के फ़ैसले
मुश्किलात में वही देता है, तुम्हें सब्र और हौसले
इबादत, सख़ावत करके, कुछ नेकियां करले बंदे
सजदे में सर झुकाकर, गुनाहों से तौबा तू कर ले।

★★★★★★★★★★★★★★★★★

मुझे छोड़कर, बना दे तू अजनबी, अगर मुझसे नफ़रत है,
दूर मुझसे होकर, बढ़ती तेरी बेताबी, क्या ये तेरी उल्फ़त है!

★★★★★★★★★★★★★★★★★

बुझती नहीं मन की प्यास, नहीं होती तेरे इश्क़ की बरसात,
ढलती शब में करते उजास, तेरे साथ बिताए हरेक लम्हात।

★★★★★★★★★★★★★★★★★

बहुत कुछ बदलता हैं वक़्त के साथ
बदलते रहते हैं हालात और ख़्यालात
इतने आहत हो जाते हैं बाज़ औक़ात
कि ता-उम्र सुलगते रहते हैं जज़्बात
जो बुझा पाए इस दिल की आग
नहीं होती कभी वो इश्क़ की बरसात।

★★★★★★★★★★★★★★★★★

यूँ तो मेरा दिल बेशक़ तेरे दिए ज़ख्मों से मज़लूम है,
दिल चीर के देखना अब भी तेरी जगह मुस्तहकम है।

★★★★★★★★★★★★★★★★★

उर्दू शब्दों के अर्थ: सख़ावत=दान / तौबा=माफ़ी / उल्फ़त=प्यार / शब=रात / लम्हात=वक़्त / बाज़-औक़ात= कभी कभी / मज़लूम=आहत / मुस्तहकम=अटल

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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शुक्रिया

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आगाज़-ए-शायरी (शेर-ओ-शायरी)

एहसास-ए-मोहब्बत जन्नत का सुकून देता है
हाँ ! आईने में महबूब का अक्स ज़ुनून देता है
जो तोड़ जाए दिल अक्सर वही रहता है याद
मरहम जो लगाता है ज़ख़्म भी यक़ीनन देता है।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★

जज़्बात की चाशनी में एतबार का मावा मिल जाए
परवाह की खुशबू के साथ थोड़ा एहतराम घुल जाए
रंग और मेवा डालकर बढ़ जाती है मिठास इश्क़ की
बड़ी ही लज़ीज फिर मोहब्बत की मिठाई बन जाए।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★

ज़िंदगी के उस  मोड़ पर अकेली मैं खड़ी थी
हौसले के औज़ार से मौत की जंग लड़ी थी
कुछ अजीब सी रोशनी को मैंने पास पाया था
बंदगी में ख़ुदा से जुड़ी मेरी रूह की कड़ी थी।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★

ज़मीन-ए-दिल में दफ़न हैं अनसुनी शिकायतें
ग़म-ए-धूप से सूख गई हैं सारी अधूरी हसरतें
मुसलसल चल रही जहरीली मुसीबत की हवा 
लगता है ख़ुदा भी नहीं सुन रहा है मेरी मिन्नतें।

★★★★★★★★★★★★★★★★★★

क़ौस-ए-क़ुज़ह की कलम से
कुछ यादें लिखी हैं फ़लक पे
मुसलसल बरसती हैं बारिश
अक्सर सर-ज़मीन-ए-दिल पे।

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उर्दू शब्दों के अर्थ: अक्स=परछाई / क़ौस-ए-क़ुज़ह=इंद्रधनुष / मुसलसल=लगातार

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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शुक्रिया

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आगाज़-ए-शायरी (शेर-ओ-शायरी)

ग़म-ए-ज़िंदगी में  जीने की  चाहत होनी चाहिए,
तिजारत-ए-इश्क़ में प्यार की दौलत होनी चाहिए।

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माना ख़ार के बीच महकता गुलाब हो तुम,
बेशक ताउम्र पढ़ना चाहो वो किताब है हम।

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ख़्वाबों की बंद खिड़की खोल, वो सजा गया मेरी दुनिया,
हालात ने क्या दस्तक दी, उसने बदल दिया तौर तरीका।

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सच की पाठशाला में जब से इश्क़ है पढ़ लिया,
ख़ुदा-ए-पाक के नाम रूह पर इश्क़ लिख दिया।

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बस जाए दिल-ओ-दिमाग में हर लम्हा,
भर जाए किताब-ए-ज़ीस्त का हर पन्ना।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

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उर्दू शब्दों के अर्थ: तिजारत=व्यापार/ ख़ार=कांटा/ किताब-ए-ज़ीस्त= ज़िंदगी की किताब

शुक्रिया

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ईद-ए-मिलाद-उन-नबी

ख़ुदा की बंदगी करके पाले नूर-ए-इबादत
शब-ओ-सहर कर तू सलीक़े से तिलावत
सजदा करके बदल लें अपनी किस्मत बंदे
आख़िरत में साथ देती इबादत की ताक़त।

ईद-ए-मिलाद-उन-नबी मुबारक।🌙🌠

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)

शुक्रिया

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दीदार-ए-हसरत

दीदार-ए-हसरत  में नज़रें जमाए  बैठे है

निगाह-ए-जमाल की तलब लगाए बैठे है

ख़ार  चुभ  न जाए कहीं  पाक  कदमों में

कि राह  में दफ़्तर-ए-गुल  बिछाए बैठे है।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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ईद मुबारक

Image Source: Internet

ईद के मुक्कदस मौके पर, आज तो आकर मिल जाओ
है दरमियाँ गिले-शिकवे, आज गले लगाकर भूल जाओ
क़ुबूल करके यह रिश्ता, ख़ुदा ने प्यार से इसे है नवाज़ा
रिश्ते में है गलतफहमी की दरार, आज इसे सिल जाओ।

आप सभी को ईद मुबारक🌙🌠

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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आगाज़-ए-शायरी(शेर-ओ-शायरी)

यकीन है खुदा पर तभी इम्तिहान ले रहा है मेरा

दर्द दे कर रुलाता है, फ़िर हँसाता भी है

बार बार गिराता है, फ़िर उठाता भी है

मैं भी देखती हूँ कि दर्द जीतता है या यकीन मेरा।

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लोग हमे पागल समझते है, हमारी हँसी को देखकर

अब उन्हें क्या पता इस हँसी के पीछे रखते है कितने दर्द छिपाकर।

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जिन आँखों में गहरा झील बसता था

जिंदगी ने है इतना रुलाया

सूख गया है ग़म-ए-समंदर

अब तो अश्क़ भी नहीं गिरता।

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उसने कहा दवाई ले लो ताकि दिल का दर्द कम हो

अब उन्हें कैसे कहे कि दिल के हक़ीम ही तुम हो।

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शेरो-शायरी लिखना हमें कहा आता है

ये तो दिल के एहसास है जो उभर आते है।

© Jalpa lalani ‘Zoya’

शुक्रिया।

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आगाज़-ए-शायरी(हिंदी शायरी)

“खुशी” 

मुद्दतों से देख रहे थे राह तेरी 

तू आयी भी तो तब 

जब सफ़र ख़त्म होने को है।

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गलत सोच थी मेरी

दुःख की इमारत मेरी है सबसे बड़ी

जब किया मैंने सफ़र

हर इमारत बड़ी निकली।

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ज़्यादा नही बदला मेरा बचपन

पहले सब रोकते थे

और हम खेलते थे

अब सब खेल रहे है हमसे

और हम रुके हुए से हैं।

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प्यार हुआ पर पूरा ना हुआ 

ख़्वाब देखा पर ज़रा देर से देखा 

मुलाक़ातें हुई मगर अधूरी रही 

जुदा हुए मगर एहसास कम ना हुआ। 

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बाहों में उनके लेते ही हम तो पिघल से गये

पता ही नही चला कब हम उनके इतने क़रीब आ गए।

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अक्सर हमारे पैरों में कांटा चुभना भी गवारा  नही था उनको

अब दिल के ज़ख़्म का भी एहसास नहीं उनको।

~Jalpa