इज़हार-ए-इश्क़ में कुछ क़समें झूठी सी उसने खाई थी,
यक़ीन नहीं आता, क्या मोहब्बत भी झूठी दिखाई थी?
सरेआम नीलाम कर दिए उसने मेरे हर एक ख़्वाब को,
जिसने मेरे दिन का चैन औ मेरी रातों की नींद चुराई थी।
जिसे समझ बैठी थी मैं आग़ाज़-ए-मोहब्बत हमारी,
दरअसल वो तो मिरे दर्द-ए-दिल की इब्तिदाई थी।
यूँ तो नज़रअंदाज़ कर गई मैं उसकी सारी गलतियां,
मगर क्या अच्छाई के पीछे भी छुपी उसकी बुराई थी!
अब कैसा गिला और क्या शिकायत करूँ उससे!
जब दोनों के मुक़द्दर में ही लिखी गई जुदाई थी।
उसकी इतनी बे-हयाई और बेवफ़ाई के बावज़ूद भी,
माफ़ कर दिया उसे, ये तो ‘ज़ोया’ की भलाई थी।
[इब्तिदाई=शुरुआत]
Copyright © 2022 Jalpa lalani ‘Zoya’
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