दोस्तों बह्र में मेरी पहली ग़ज़ल पेश-ए-ख़िदमत है।
बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222
मिरी हर बात में, हर लफ़्ज़ में तुम हो,
जुदा ना मुझसे, मेरे अक्स में तुम हो।
तिरी ख़ुश्बू से मेरी, साँसें है चलती,
मिरे दिल तक हैं जो,हर नब्ज़ में तुम हो।
तू ही रब, तू दुआ भी हो सनम मेरे,
यूँ शामिल ऐसे, मेरी नफ़्स में तुम हो।
तू है उनवान तू ही इख़्तिताम भी है,
किताब-ए-ज़िन्दगी के हर्फ़ में तुम हो।
शुरू तुझ से, ख़तम तुझ पे मिरी तहरीर,
यूँ ‘ज़ोया’ की ग़ज़ल, हर नज़्म में तुम हो।
स्वरचित (सर्वाधिकार सुरक्षित)
Copyright © 2021 Jalpa lalani ‘Zoya’
उर्दू शब्दों के अर्थ:- [ इख़्तिताम=समापन, ending/ तहरीर=लेखनी/ नब्ज़=रग/ नफ़्स=आत्मा,रूह/ उनवान=शीर्षक]
बेहतरीन 👏👏
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शुक्रिया😊
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Waah-waah, gazab ghazal 👏
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शुक्रिया😊
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You’re welcome! Keep writing, stay connected 😊
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😊🙏
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