ख़ुशी, ग़म, प्रेम, धोखे के टुकड़े मिलाकर,
बुन ली है मैंने पुरानी यादों की चादर।
सुराख़ से सर्द हवा झाँकती, मैली, फटी सी,
फिर भी गर्माहट देती पुरानी यादों की चादर।
जब सितम ढाए तेज़ धूप और गर्म हवा,
अंगारों सी तपती जमीं पर बनती मेरा बिस्तर।
कभी सताए बुरे ख़्वाब, हो तन्हाई महसूस,
पुरानी यादों की चादर ओढ़ लेती हूँ लपेटकर।
ख़ामोशी से जब बहता है अश्कों का सैलाब,
बन जाती माँ का आँचल पुरानी यादों की चादर।
© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)
सर्वाधिकार सुरक्षित
धन्यवाद
बहुत सुन्दर रचना..
बधाई..
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बहुत शुक्रिया😊
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हृदयस्पर्शी रचना 👏👏👌🏼
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बहुत शुक्रिया😊
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good
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बहुत शुक्रिया😊
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Beautiful 💟💟
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बहुत शुक्रिया😊
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बहुत शुक्रिया😊
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Touching
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🙏🙏
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बहुत ही बेहतरीन रचना।👌👌
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बहुत धन्यवाद😊
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