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तारीफ़-ए-हुस्न

सुनहरी लहराती ये ज़ुल्फ़ें तिरी और ये शबाब,
कोमल नाज़ुक बदन तिरा जैसे महकता गुलाब।

बैठ गया तू सामने तो साक़ी की क्या ज़रूरत,
सुर्ख़ थरथराते ये लब तिरे जैसे अंगूरी शराब।

सहर में जब तू लेता अंगड़ाई ओ मिरे सनम,
तुझे चूमने फ़लक से उतर आता है आफ़ताब।

रौशन कर दे अमावस की काली अँधेरी रात भी,
मिरा हसीं माशूक़ जब रुख़ से उठाता है हिजाब।

तारीफ़-ए-हुस्न लिखने को बेताब है मेरी कलम,
ग़ज़ल क्या! ‘ज़ोया’ तुझ पे लिख दूँ पूरी किताब।

© Jalpa lalani ‘Zoya’ (स्वरचित)

सर्वाधिकार सुरक्षित

शुक्रिया

Author:

I am a tuition teacher and a published author on Amazon. Read my books of Hindi poetries & Shayari. Three books have been published on Amazon and two books on notionpress. Which are as follows: 'कुछ अनकहे जज़्बात' / 'आख़िर दिल है हिन्दुस्तानी'-वतन की खुश्बू /'ऊँची उड़ान'- with the wings of patience /'तक़दीर से उम्मीद'/ 'आगाज़-ए-शायरी'. Many compositions published on various well-known forums. Participated in many competitions and got awards and certificates. I continued to put life experiences into words that are simple, beautifully provided by God. I hope to reach the heart of the readers.

19 thoughts on “तारीफ़-ए-हुस्न

  1. वाह। क्या बात।👌👌
    मत लिख किताब,
    कही खो न जाएं उसमें,
    आ पास जरा,बैठ इत्मीनान,
    प्यासी हैं नजरें
    कान और दिल भी,
    अजीब सी है हलचल,
    छूकर गुजरते पानी कलकल,
    रख दे कलम और दवात अभी कही दूर,
    बैठे हैं किस्ती में मगर लगता क्यों ऐसे
    जैसे सागर से हूँ अभी दूर।

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