ख़ुद से ख़ुद का जोड़ लिया है राब्ता
इस फ़रेबी दुनिया में अब नहीं आता किसी पर भरोषा।
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सब को दर्द बाँटते बाँटते
हमदर्द तो नहीं मिला
हर बार ज़ख्म ताज़ा हुआँ
अब मरहम भी नहीं मिलता।
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कमरा भी इतना महक ने लगा कि
इतनी खुश्बू ही उनकी बातों में थी।
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आख़िर किस हद तक रिश्ते में झुका जाए
यह तराजू है जिंदगी का
गर दोनो और से समान रखा जाए
तो घाटा नहीं होगा किसिका।
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क्यूँ शिकायत करते हो कि तन्हा हूँ दिल से
यहाँ हर कोई अकेला है भरी महफ़िल में।
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आ गया उनपे हमें इतना एतबार
एक दिन कर दिया उसने इज़हार
हो गया था हमें भी प्यार
कर बैठे हम भी इक़रार।
~Jalpa
बेहतरीन…खूबसूरत अल्फाज है।
एैसे ही लिखते रहिए और बढ़ते रहिए🌺😊
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जी सराहना के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपका😊
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बहुत बढ़िया👏👏
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जी शुक्रिया आपका😊 लेकिन यह शायरी नहीं हैं साधक जी। अब समझ आया🙏
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प्रयास शानदार रहा अभी की कुछ रचनायें सादर प्रस्तुत करिये। 🌿
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जी आज ही करती हूँ एक और😊
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हार्दिक आभार🙏
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