हाँ! मैं ख़ुद से प्यार करती हूँ…
बड़ी मुश्किलों के बाद
अपने आपसे यह इज़हार करती हूँ
हाँ! मैं ख़ुद से प्यार करती हूँ।
ज़िंदगी ने दिए हैं ज़ख़्म कई
तभी अपने आपसे प्यार करती हूँ
छोड़ दिया हैं तन्हा सभी ने
अब तन्हाईयो में ख़ुद से बात करती हूँ…
हाँ! मैं ख़ुद से प्यार करती हूँ।
ख़ुदग़र्ज़ लगूँगी मैं आपको
पर ख़ुदग़र्ज़ ना कहना मुझे
बड़ी मुश्किलों के बाद…
हिम्मत जुटाई है मैंने,
यूँ तो आसान होगा
किसी और से इज़हार करना
कभी अपने दिल से
ख़ुद इज़हार करके तो देख
कितना प्यार आता है ख़ुद पे
ज़रा एक बार करके तो देख
यही तन्हाईयो में ख़ुद से बार बार कहती हूँ,
आईने में देखकर ख़ुद से मुलाकात करती हूँ…
हाँ! मैं ख़ुद से प्यार करती हूँ।
यूँ तो कई से प्यार करके देखा है मैंने
पर प्यार न मिलने का ग़म हर बार सहा है मैंने
तो क्यूँ ना अपने आपसे प्यार किया जाए?
चलो एकबार यह भी करके देख लिया जाए
ख़ुद से यही ज़िक्र बार बार करती हूँ…
हाँ! मैं ख़ुद से प्यार करती हूँ।
यूँ तो रोते हुए को देखकर
आँसू आए हैं मेरी आँखों में
हर रोते हुए को हसाया हैं मैंने
नवाज़ा है खुदा ने मुझे इस इनायत से
कहा है मूझसे, सभी को प्यार बाँटते हुए
कभी अपने आपसे भी प्यार कर ले,
ख़ुदा की यहीं रहमत को
सजदे के साथ इक़रार करती हूँ…
हाँ! मैं ख़ुद से प्यार करती हूँ।
© Jalpa lalani ‘Zoya’ (सर्वाधिकार सुरक्षित)
Note: यह रचना पब्लिश हो चुकी है। यह रचना कॉपीराइट के अंतर्गत है।
शुक्रिया।
खुबसूरत रचना, शानदार👍💐
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जी बहुत शुक्रिया आपका😊
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Sahi baat !!
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जी शुक्रिया😊
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खूबसूरत रचना । खुद को समझना, खुद से प्यार करना चाहिए ।
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